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Saturday, December 18, 2021

ज़िन्दगी की तलाश जारी है

ज़िन्दगी की तलाश जारी है
इक ख़ुशी की तलाश जारी है।

हर तरफ़ ज़ुल्मतों के मौसम में
रौशनी की तलाश जारी है।

(ज़ुल्मत = अंधेरा)

इस उदासी के ढेर के नीचे
इक हँसी की तलाश जारी है।

जो बचा ले सज़ा से हाक़िम को
उस गली की तलाश जारी है।

(हाक़िम  = न्यायाधिश, जज, स्वामी, मालिक, राजा, हुक्म करने वाला)

जो परख ले हमें यहां ऐसे
जौहरी की तलाश जारी है।

खो गया है कहीं कोई मुझमें
बस उसी की तलाश जारी है।

मिल गए हैं ख़ुदा कई लेकिन
आदमी की तलाश जारी है।

- विकास जोशी "वाहिद"  १३/१२/१९

Sunday, January 3, 2021

पूरा यहाँ का है न मुकम्मल वहाँ का है

पूरा यहाँ का है न मुकम्मल वहाँ का है
ये जो मिरा वजूद है जाने कहाँ का है

क़िस्सा ये मुख़्तसर सफ़र-ए-रायगाँ का है 
हैं कश्तियाँ यक़ीं की समुंदर गुमाँ का है

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त), (सफ़र-ए-रायगाँ = व्यर्थ का सफ़र), (गुमाँ = गुमान, घमण्ड, अहँकार)

मौजूद हर जगह है ब-ज़ाहिर कहीं नहीं
हर सिम्त इक निशान किसी बेनिशाँ का है

धुंधले से कुछ नज़ारे उभरते हैं ख़्वाब में
खुलता नहीं है कौन-सा मंज़र कहाँ का है

दीवार-ओ-दर पे सब्ज़ा है और दिल है ज़र्द-ज़र्द
ये मौसम-ए-बहार ही मौसम ख़ज़ाँ का है

(सब्ज़ा = घास), (ख़ज़ाँ = पतझड़)

ह़ैराँ हूंँअपने लब पे तबस्सुम को देखकर
किरदार ये तो और किसी दास्ताँ का है

(तबस्सुम = मुस्कराहट)

दम तोड़ती ज़मीं का है ये आख़िरी बयान
होठों पे उसके नाम किसी आसमाँ का है

जाते हैं जिसमें लोग इबादत के वास्ते
सुनते हैं वो मकान किसी ला-मकाँ का है

(ला-मकाँ = ईश्वर, ख़ुदा)

आँसू को मेरे देखके बोली ये बेबसी
ये लफ़्ज़ तो ह़ुज़ूर हमारी ज़ुबाँ का है

- राजेश रेड्डी

Thursday, November 19, 2020

इसके ज़्यादा उसके कम

इसके ज़्यादा उसके कम
सबके अपने अपने ग़म।

ज़ख़्म उसी ने बख़्शे हैं
जिसको बख़्शा था मरहम।

जो लिक्खा है वो होगा
पन्ना पहनो या नीलम।

हाय, तबस्सुम चेहरे पर
फूल पे हो जैसे शबनम।

(तबस्सुम =  मुस्कराहट), (शबनम = ओस)

साँसों तक का झगड़ा फिर
कैसी ख़ुशियाँ, क्या मातम।

सुब्ह तलक जो जलना था
रक्खी अपनी लौ मद्धम।

आँखें कितनी पागल हैं
अक्सर बरसीं बे-मौसम।

इक मौसम में बारिश के
यादों के कितने मौसम।

ख़्वाहिश अब तक ज़िंदा है
जिस्म पड़ा है पर बेदम।

- विकास वाहिद

Thursday, May 7, 2020

कुछ नहीं बदला, दीवाने थे दीवाने ही रहे

कुछ नहीं बदला, दीवाने थे दीवाने ही रहे
हम नये शहरों में रहकर भी पुराने ही रहे

दिल की बस्ती में हज़ारों इंक़लाब आये मगर
दर्द के मौसम सुहाने थे सुहाने ही रहे

हमने अपनी सी बहुत की वो नहीं पिघला कभी
उसके होठों पर बहाने थे बहाने ही रहे

ऐ परिंदों हिजरतें करने से क्या हासिल हुआ
चोंच में थे चार दाने, चार दाने ही रहे

-इक़बाल अशहर

(हिजरतें = प्रवास, Migration)

Wednesday, April 22, 2020

कितना सुख है निज अर्पन में

जाने कितने जन्मों का
सम्बंध फलित है इस जीवन में ।।

खोया जब ख़ुद को इस मद में
अपनी इक नूतन छवि पायी,
और उतर कर अनायास
नापी मन से मन की गहराई,
दो कोरों पर ठहरी बूँदें
बह कर एकाकार हुईं जब,
इक चंचल सरिता सब बिसरा
कर जाने कब सिंधु समायी ।

सब तुममय था, तुम गीतों में
गीत गूँजते थे कन-कन में।।

मिलने की बेला जब आयी
दोपहरी की धूप चढ़ी थी,
गीतों को बरखा देने में
सावन ने की देर बड़ी थी,
होंठों पर सुख के सरगम थे,
पीड़ा से सुलगी थी साँसें,
अंगारों के बीच सुप्त सी
खुलने को आकुल पंखुड़ी थी ।

पतझर में बेमौसम बारिश
मोर थिरकता था ज्यों मन में ।।

थीं धुँधली सी राहें उलझीं
पर ध्रुवतारा लक्ष्य अटल था,
बहुत क्लिष्ट थी दुनियादारी
मगर हृदय का भाव सरल था,
लपटों बीच घिरा जीवन पर
साथ तुम्हारा स्निग्ध चाँदनी,
पाषाणों के बीच पल रहे
भावों का अहसास तरल था ।

है आनंद पराजय में अब
कितना सुख है निज अर्पन में ।।

-मानोशी 

Sunday, August 25, 2019

तेरे आने का इंतिज़ार रहा
उम्र भर मौसम-ए-बहार रहा

तुझ से मिलने को बे-क़रार था दिल
तुझ से मिल कर भी बे-क़रार रहा

-रसा चुग़ताई

Friday, August 23, 2019

छोड़ा न मुझे दिल ने, मिरी जान कहीं का

छोड़ा न मुझे दिल ने, मिरी जान कहीं का
दिल है कि नहीं मानता, नादान कहीं का

जाएँ तो कहाँ जाएँ, इसी सोच में गुम हैं
ख़्वाहिश है कहीं की तो, है अरमान कहीं का

हम हिज्र के मारों को कहीं, चैन कहाँ है
मौसम नहीं जचता हमें, इक आन कहीं का

(हिज्र = जुदाई)

इस शोख़ी-ए-गुफ़्तार पर, आता है बहुत प्यार
जब प्यार से कहते हैं वो, शैतान कहीं का

(शोख़ी-ए-गुफ़्तार = सुख़द बातचीत)

ये वस्ल की रुत है कि, जुदाई का है मौसम
ये गुलशन-ए-दिल है कि, बयाबान कहीं का

कर दे न इसे ग़र्क़ कोई, नद्दी कहीं की
ख़ुद को जो समझ बैठा है, भगवान कहीं का

इक हर्फ़ भी तहरीफ़-ज़दा, हो तो दिखाए
ले आए उठा कर कोई, क़ुरआन कहीं का

(हर्फ़ = अक्षर), (तहरीफ़-ज़दा = बदला हुआ, तब्दील)

महबूब नगर हो कि, ग़ज़ल गाँव हो "राग़िब"
दस्तूर-ए-मोहब्बत नहीं, आसान कहीं का

-इफ़्तिख़ार राग़िब

Tuesday, July 2, 2019

मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा
और आने वाले मौसमों के ख़्वाब देखता रहा

किसी ने मुझ से कह दिया था ज़िंदगी पे ग़ौर कर
मैं शाख़ पर खिला हुआ गुलाब देखता रहा

-अफ़ज़ाल फ़िरदौस

Thursday, March 21, 2019

यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है

उम्मीद ओ यास की रुत आती जाती रहती है
मगर यक़ीन का मौसम नहीं बदलता है

-मंज़ूर हाशमी

(यास = नाउम्मीदी, निराशा)

Wednesday, February 13, 2019

खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरह

खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरह
ज़िंदगी महव-ए-तजस्सुस है हवाओं की तरह

(सदाओं = आवाज़ों), (महव-ए-तजस्सुस = तलाश में तल्लीन/ तन्मय/ डूबी हुई)

टूट जाए न कहीं शीशा-ए-पैमान-ए-वफ़ा
वक़्त बे-रहम है पत्थर के ख़ुदाओं की तरह

हम से भी पूछो सुलगते हुए मौसम की कसक
हम भी हर दश्त पे बरसे हैं घटाओं की तरह

(दश्त = जंगल)

बारहा ये हुआ जा कर तिरे दरवाज़े तक
हम पलट आए हैं नाकाम दुआओं की तरह

कभी माइल-ब-रिफ़ाक़त कभी माइल-ब-गुरेज़
ज़िंदगी हम से मिली तेरी अदाओं की तरह

(माइल-ब-रिफ़ाक़त = मेल-जोल की प्रवृति), (माइल-ब-गुरेज़ = दूर रहने की प्रवृति)

-मुमताज़ राशिद

Wednesday, January 2, 2019

आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया

आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया

खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया

बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया

(शाद = प्रसन्न, खुश, आनंदित)

बात बहुत मा'मूली सी थी उलझ गई तकरारों में
एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बरबाद किया

दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही
सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया

(दाना = बुद्धिमान, अक़्लमंद)

-निदा फ़ाज़ली

Tuesday, July 31, 2018

ख़ुश्क पत्ता ही सही, रौंद के आगे ना बढ़ो
मैं गई रुत की निशानी हूँ, उठालो मुझको
-नो-बहार सिंह "साबिर"

Tuesday, October 18, 2016

जब भी किसी निगाह ने मौसम सजाये हैं

जब भी किसी निगाह ने मौसम सजाये हैं
तेरे लबों के फूल बहुत याद आये हैं

निकले थे जब सफ़र पे तो महदूद था जहाँ
तेरी तलाश ने कई आलम दिखाये हैं

(महदूद = जिसकी हद बाँध दी गई हो, सीमित)

रिश्तों का ऐतबार, वफाओं का इंतज़ार
हम भी चिराग़ ले के हवाओं में आये हैं

रस्तों के नाम वक़्त के चेहरे बदल गए
अब क्या बताएँ किसको कहाँ छोड़ आये हैं

ऐ शाम के फ़रिश्तों ज़रा देख के चलो
बच्चों ने साहिलों पे घरोंदे बनाये हैं

-निदा फ़ाज़ली

Saturday, August 6, 2016

वो आँगन वो गलियां दरख्तों के साये

वो आँगन वो गलियां दरख्तों के साये
न जाने अभी तक क्यों हमको बुलायें

न बाबा न अम्मा न वो संगी साथी
बचा क्या है अब जिसकी यादें रुलायें

बचपन की चोटें और अम्मा के फाहे
हुआ दर्द जब भी बहुत याद आये

वो आँखों से डरना दबे पांव चलना
जवानी में जब भी कदम लड़खडा़ये

बहुत याद आते है वो गुज़रे ज़माने
बिना बात जब हमने आंसू बहाये

न आएगा फिर वो मौसम कभी भी
यही दर्द तो अब है हमको सताये

शहर भी वही है वही सारी राहें
मगर हमको अपने कहीं दिख न पाये

-स्मृति रॉय

Saturday, July 2, 2016

मौसम की मनमानी है, आँखों आँखों पानी है

मौसम की मनमानी है
आँखों आँखों पानी है

साया साया लिख डालो
दुनिया धूप कहानी है

सब पर हँसते रहते हैं
फूलों की नादानी है

हाय ये दुनिया,हाय ये लोग
हाय,ये सब कुछ फ़ानी है

(फ़ानी = नश्वर, नष्ट हो जाने वाला)

साथ एक दरिया रख लेना
रस्ता रेगिस्तानी है

कितने सपने देख लिये
आँखों को हैरानी है

दिलवाले अब कम कम हैं
वैसे क़ौम पुरानी है

दुनिया क्या है मुझसे पूछ
मैंने दुनिया छानी है

बारिश,दरिया,सागर,ओस,
आँसू पहला पानी है

तुझको भूले बैंठे हैं
क्या ये कम क़ुर्बानी है

दरिया हमसे आँख मिला
देखें कितना पानी है

मौसम की मनमानी है
आँखों आँखों पानी है

-राहत इंदौरी

Friday, June 3, 2016

पारा-पारा हुआ पैराहन-ए-जाँ

पारा-पारा हुआ पैराहन-ए-जाँ
फिर मुझे छोड़ गये चारागराँ

(पारा-पारा = टुकड़े-टुकड़े), (पैराहन-ए-जाँ = प्राणों का लिबास, शरीर), (चारागराँ = चिकित्सक)

कोई आहट, न इशारा, न सराब
कैसा वीराँ है ये दश्त-ए-इम्काँ

(सराब = मृगतृष्णा), (वीराँ = वीरान), (दश्त-ए-इम्काँ = संभावनाओं का जंगल, सम्भावना क्षेत्र, संसार)

चारसू ख़ाक़ उड़ाती है हवा,
अज़कराँ ताबाकराँ रेग-ए-रवाँ

(चारसू = चारों ओर, हर समय), (अज़कराँ = प्रभुत्व स्थापित करना), (ताबाकराँ = चमकदार), (रेग-ए-रवाँ = उड़ता हुआ बालू या रेत)

वक़्त के सोग में लम्हों का जुलूस
जैसे इक क़ाफ़िला-ए-नौहागराँ

(सोग = शोक), (क़ाफ़िला-ए-नौहागराँ = शोक मनाने वालों का कारवां)

मर्ग-ए-उम्मीद के वीराँ शब-ओ-रोज़
मौसम-ए-दहर, बहार और न ख़िज़ाँ

(मर्ग-ए-उम्मीद = आशाओं की मौत), (वीराँ = वीरान), (शब-ओ-रोज़ = रात और दिन), (मौसम-ए-दहर = दुनिया का मौसम), (ख़िज़ाँ = पतझड़)

कैसे घबराये हुए फिरते हैं
तेरे मोहताज़ तेरे दिल-ज़दगाँ

(दिल-ज़दगाँ = दिल की चोट खाये हुए)

-सय्यद रज़ी तिरमिज़ी


Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली
https://youtu.be/p7_zp7NdQOA




Thursday, April 21, 2016

इन नए मौसमों का असर देखिये

इन नए मौसमों का असर देखिये
गिर रहे हैं पुराने शजर देखिये

(शजर = पेड़)

इक जरा सी मुनादी की आवाज़ से
काँप उठा है सारा नगर देखिये

आप के तीर-ओ-नश्तर के इस खेल में
उड़ न जाये कहीं मेरा सर देखिये

ज़िंदगानी हमारी अब इस मोड़ से
लेके जाती है किस मोड़ पर देखिये

जब कहीं कोई रस्ता दिखाई न दे
दिल जिधर कह रहा हो उधर देखिये

हर किसी ने यही कह के लौटा दिया
जाइये दूसरा कोई दर देखिये

ये जो दुनिया है इसको कभी ग़ौर से
देखकर सोंचिये, सोंचकर देखिये

-राजेश रेड्डी

Wednesday, April 20, 2016

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
मैं तो सूरज हूँ बुझूंगा भी तो जलने के लिए

मंज़िलों ! तुम ही कुछ आगे की तरफ बढ़ जाओ
रास्ता कम है मेरे पाँवों को चलने के लिए

ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है
एक मौका भी नहीं देती संभलने के लिए

मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं
साज़िशें होने लगी मुझको बदलने के लिए

महफ़िल-ए-इश्क़ में शामों की ज़रूरत क्या है
दिल को ही मोम बनाते हैं पिघलने के लिए

ये बहाना तेरे दीदार की चाहत का है
हम जो आते हैं इधर रोज़ टहलने के लिए

-शकील आज़मी

Saturday, April 9, 2016

बहुत हो गया दिल जलाने का मौसम

बहुत हो गया दिल जलाने का मौसम
यही है यही मुस्कुराने का मौसम।

चलो आज फिर से कसम ये उठा लें
न आये कभी दिल दुखाने का मौसम।

सुनो आज मौसम यही कह रहा है
सभी से दिलों को मिलाने का मौसम।

कहीं आग से घर किसी का जले ना
लगी आग फिर से बुझाने का मौसम।

खिजाएं यहाँ फिर पलट कर न आएं
नए पेड़ फिर से लगाने का मौसम।

तुम्हारे हमारे सदा बीच हो अब
किये जो भी वादे निभाने का मौसम ।

बहुत ठण्ड है आज लेकिन करें क्या
तेरी आँख में डूब जाने का मौसम।

चलो हाथ दिल पर रखो और कह दो
यही है दिलों को मिलाने का मौसम।

मिला कर नज़र हो गए तुम परीशां
नरम धूप है गुनगुनाने का मौसम।

अगर हम बहकने लगें रोक देना
नहीं ये नहीं गुल खिलाने का मौसम।

किसी को किसी से मुहब्बत नहीं है
चलो 'आरसी' दूर जाने का मौसम।

-आर. सी . शर्मा "आरसी"

Saturday, February 27, 2016

मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुश्वारी है

मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है

(सहल = सहज, आसान)

औरों जैसे होकर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है

(अय्यारी = चालाकी, धूर्तता)

जब-जब मौसम झूमा हम ने कपड़े फाड़े शोर किया
हर मौसम शाइस्ता रहना कोरी दुनियादारी है

(शाइस्ता = सभ्य, शिष्ट)

ऐब नहीं है उसमें कोई, लाल परी न फूल गली
यह मत पूछो, वह अच्छा है या अच्छी नादारी

(नादारी = गरीबी, निर्धनता)

जो चेहरा देखा वह तोड़ा, नगर-नगर वीरान किए
पहले औरों से नाखुश थे अब खुद से बेज़ारी है

(बेज़ारी = अप्रसन्नता, नाराज़गी)


- निदा फ़ाज़ली