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Tuesday, July 23, 2019

हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए
नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
-नुशूर वाहिदी

(फ़रोज़ाँ = प्रकाशमान, रौशन)

Thursday, December 13, 2012

तुम क्या गए कि जैसे दुनिया बदल गई है,
सूरज वही है लेकिन रौनक़ नहीं सहर में।
-नुशूर वाहिदी

(सहर = सुबह, सवेरा)

Sunday, November 25, 2012

साक़ी ये हरीफ़ों को पहचान के देना क्या,
जब बज़्म से हम निकले तब दौर में जाम आया।
-नुशूर वाहिदी

[(हरीफ़ = दुश्मन), (बज़्म = महफ़िल)]
हम सायाए महताब में पाले भी गए हैं,
और कितनी बहारों से निकाले भी गए हैं।

(सायाए महताब = चन्द्रमा की छाँव)

रहबर ही का अहसान नहीं राहे जुनूँ पर,
कुछ दूर मेरे पांव के छाले भी गए हैं।

[(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक), (राहे जुनूँ  = दीवानगी का रास्ता)]

-नुशूर वाहिदी

 
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है,
चले आओ जहां तक रोशनी मालूम होती है।
-नुशूर वाहिदी