मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में कि सारे खोने के ग़म पाए हमने पाने में वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे अजीब बात हुई है उसे भुलाने में जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलट के आने में (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत) लतीफ़ था वो तख़य्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
(लतीफ़ = मज़ेदार), (तख़य्युल = कल्पना)
समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
(सराब = मृगतृष्णा, मरीचिका) झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में (दरख़्त = पेड़)
-जावेद अख़्तर
ग़म-ए-हयात में कोई कमी नहीं आई
नज़र-फ़रेब थी तेरी जमाल-आराई
(ग़म-ए-हयात = जीवन का दुःख), (नज़र-फ़रेब = नज़रों का धोका), (जमाल-आराई = सौंदर्य की सजावट/ श्रृंगार)
वो दास्ताँ जो तेरी दिलकशी ने छेड़ी थी
हज़ार बार मिरी सादगी ने दोहराई
(दिलकशी = मनोहरता, सुंदरता)
फ़साने आम सही मेरी चश्म-ए-हैराँ के
तमाशा बनते रहे हैं यहाँ तमाशाई
(चश्म-ए-हैराँ = हैरान नज़र)
तिरी वफ़ा, तिरी मजबूरियाँ, बजा लेकिन
ये सोज़िश-ए-ग़म-ए-हिज़्राँ, ये सर्द तन्हाई
(बजा = उचित, मुनासिब, ठीक), (सोज़िश-ए-ग़म-ए-हिज़्राँ = जुदाई/ विरह के दुःख की जलन)
किसी के हुस्न-ए-तमन्ना का पास है वर्ना
मुझे ख़याल-ए-जहाँ है, न ख़ौफ़-ए-रुस्वाई
(पास = लिहाज़), (ख़याल-ए-जहाँ = दुनिया की फ़िक्र), (ख़ौफ़-ए-रुस्वाई = बदनामी का डर)
मैं सोचता हूँ ज़माने का हाल क्या होगा
अगर ये उलझी हुई ज़ुल्फ़ तूने सुलझाई
कहीं ये अपनी मुहब्बत की इंतिहा तो नहीं
बहुत दिनों से तिरी याद भी नहीं आई