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Thursday, February 21, 2019

तुम मुझको कब तक रोकोगे

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं
सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं, जिसको नदियों ने सींचा है
बंजर माटी में पलकर मैंने, मृत्यु से जीवन खींचा है
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ, शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है
तानों  के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकड़ फेंकोगे
चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं
अपने ही हाथों रचा स्वयं, तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं
तुम हालातों की भट्टी में, जब-जब भी मुझको झोंकोगे
तब तपकर सोना बनूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

-नामालूम






Wednesday, October 24, 2012

क्या जीवन का ध्येय यही है?

जीवन के आगे जीवन है,
जीवन के पीछे जीवन है,
पर जीवन की खोज मृत्यु हो,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

जीवन कहाँ शांतिमय होगा,
जहां शांति है वहाँ ना जीवन,
पर मैं शांति खोजता फिरता
आदि शांतिमय, अंत शान्ति है,
शांति मध्य में भी मैं ढूँढू
क्या जीवन का ध्येय यही है?

जीवन के तो अगणित पथ हैं,
हर पथ के अगणित राही हैं,
एक पथिक बन मैं भी जी लूं,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

वृक्ष एक बढ़ता जाता है,
नीचे एक पुष्प कुसुमित है,
वृक्ष कहे बढ़ते जाना है,
फूल कहे जग महकाना है,
एक दूसरे से वह पूछे,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

पास बही जाती हो नदिया,
शीतल, चंचल, गहन सौम्य सी,
मेरा मन हो विकुल प्यास से,
पर मैं प्यासा बैठ किनारे,
बाट जोहता रहूँ मेघ की,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

इधर हमें कर्त्तव्य पुकारे,
उधर ह्रदय कहता, जीने दो,
चीख-चीख कर आस कह रही,
मुझे बचाओ टूट रहीं हूँ,
मैं सुना, अनसुना सब कर दूं,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

जब आँखों से नीर बह चले,
और हूक सी उठे हदय में,
तब अपनी अमूल्य पीड़ा को,
भेंट चढ़ा दूं मुस्कानों की,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

जिस विशाल नभ की छाया में,
बाल्यकाल है अपना बीता,
जिसने भेजा चन्द्रकिरण को,
भरा हमारा अंतर रीता,
उस विशाल मंदिर को ताज कर,
विचरें इक छोटी कुटिया में,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

दो आँखे हैं, दो आंसू हैं,
चार नयन हैं, दो मुस्कानें
झुटला कर इस अटल सत्य को,
उतराऊं झूठे दर्शन में,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

मुझमें है मष्तिष्क, हृदय है,
मझमें काम, क्रोध, और भय है,
जो अपना है उसे दबा कर,
रूप देवता का कर लूं मैं,
क्या जीवन का ध्येय यही है?

-कवि: नामालूम