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Sunday, August 4, 2019

वो दिल भी जलाते हैं रख देते हैं मरहम भी

वो दिल भी जलाते हैं रख देते हैं मरहम भी
क्या तुर्फ़ा तबीअत है शोला भी हैं शबनम भी

(तुर्फ़ा अनोखा, अजीब)

ख़ामोश न था दिल भी ख़्वाबीदा न थे हम भी
तन्हा तो नहीं गुज़रा तन्हाई का आलम भी

(ख़्वाबीदा =सोया हुआ, सुप्त)

छलका है कहीं शीशा ढलका है कहीं आँसू
गुलशन की हवाओं में नग़मा भी है मातम भी

हर दिल को लुभाता है ग़म तेरी मोहब्बत का
तेरी ही तरह ज़ालिम दिल-कश है तिरा ग़म भी

इंकार-ए-मोहब्बत को तौहीन समझते हैं
इज़हार-ए-मोहब्बत पर हो जाते हैं बरहम भी

(बरहम = नाराज़)

तुम रूक के नहीं मिलते हम झुक के नहीं मिलते
मालूम ये होता है कुछ तुम भी हो कुछ हम भी

पाई न ‘शमीम’ अपने साक़ी की नज़र यकसाँ
हर आन बदलता है मय-ख़ाने का मौसम भी

(यकसाँ = समान, एक जैसा)

- 'शमीम' करहानी

Saturday, August 30, 2014

फ़ासला तो है मगर, कोई फ़ासला नहीं
मुझ से तुम जुदा सही, दिल से तो जुदा नहीं

आसमाँ की फ़िक्र क्या, आसमाँ ख़फ़ा सही
आप ये बताइये, आप तो ख़फ़ा नहीं

(ख़फ़ा = नाराज़)

कारवाँ-ए-आरज़ू इस तरफ़ ना रुख़ करे
उन की रहगुज़र है दिल, आम रास्ता नहीं

(कारवाँ-ए-आरज़ू = इच्छाओं का काफ़िला), (रहगुज़र = राहगुज़र = रास्ता, मार्ग सड़क)

कश्तियाँ नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं 
कह दो नाख़ुदाओं से, तुम कोई ख़ुदा नहीं 

(नाख़ुदा = नाविक, मल्लाह)

लीजिये बुला लिया आपको ख़याल में 
अब तो देखिये हमें, कोई देखता नहीं  

इक शिकस्त-ए-आईना बन गयी है सानेहा
टूट जाए दिल अगर, कोई हादसा नहीं

(शिकस्त-ए-आईना = आईने का टूटना), (सानेहा = आपत्ति, मुसीबत, दुर्घटना)

आइये चराग़-ए-दिल आज ही जलाएँ हम
कैसी कल हवा चले, कोई जानता नहीं

(चराग़-ए-दिल =  दिल के दीपक)

किस लिए 'शमीम' से इतनी बद-गुमानियाँ
मिल के देखिये कभी, आदमी बुरा नहीं

(बद-गुमानियाँ = बुरे ख़्याल रखना, कुधारणा

-शमीम करहानी