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Monday, May 11, 2020

इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
-अल्लामा इक़बाल

 (इल्म = ज्ञान), (सुरूर = प्रसन्नता, आनंद)

Tuesday, February 13, 2018

वाइज़, शराब-ए-नाब को इतना न कोसिए
जन्नत में आप भी तो पियेंगे, अगर गए
- बेख़ुद देहलवी
(वाइज़ = धर्मोपदेशक), (शराब-ए-नाब=ख़ालिस शराब, Red wine)

Tuesday, July 21, 2015

जाए है जी निजात के ग़म में
ऐसी जन्नत गई जहन्नुम में
-मीर तक़ी मीर

(निजात = मोक्ष, मुक्ति)

 

Monday, October 20, 2014

तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ

तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

(वादा-ए-बेहिजाबी = बिना परदे में रहने का वादा)

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

(ज़ाहिदों = जितेन्द्रिय या संयमी व्यक्ति)

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ

(अहल-ए-महफ़िल = महफ़िल के लोग), (चिराग़-ए-सहर = सुबह का दीपक)

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ

(बज़्म = महफ़िल)

- अल्लामा इक़बाल

Rahat Fateh Ali Khan/ राहत फ़तेह अली ख़ान 

Dr. Radhika Chopda/ डा राधिका चोपड़ा 

Friday, August 29, 2014

ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज्यादा सफ़ाई न दे

(ख़तावार = अपराधी, दोषी)

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियोँ की सुनाई न दे

(सदा = आवाज़)

अभी तो बदन में लहू है बहुत
क़लम छीन ले, रोशनाई न दे

(रोशनाई = स्याही)

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीँ आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरोँ को ऐसी रिहाई न दे

(बरकत = लाभ, फायदा, कृपा), (असीर = बंदी, क़ैदी)

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
जहाँ से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

(इरफ़ान = बुद्धि, विवेक, ज्ञान)

-बशीर बद्र


Saturday, December 7, 2013

दोज़ख के इंतज़ाम में उलझा है रात दिन
दावा ये कर रहा है के जन्नत में जाएगा
-राहत इन्दौरी
सब चाहते हैं मंज़िलें पाना, चले बगैर
जन्नत भी सबको चाहिए लेकिन मरे बगैर

परवाज़ में कटेगी किसी की तमाम उम्र
छू लेगा आसमान को कोई उड़े बगैर
-राजेश रेड्डी

Sunday, February 24, 2013

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

वो देखो कैसा हुआ उजाला
वो ख़ुशबुओं ने चमन सँभाला
वो मस्जिदों में खिला तबस्सुम
वो मुस्कुराया है फिर शिवाला

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

तो जन्नतों से सलाम आये
पयम्बरों के पयाम आये                              (पयम्बर = संदेशवाहक), (पयाम = संदेश)
फ़रिश्ते कौसर के जाम लाये                        (कौसर = जन्नत की एक नहर का नाम)
हवा में दीपक से झिलमिलाये

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

तो लब गुलाबों के फिर से महके
नगर शबाबों के फिर से महके
किसी ने रक्खा है फूल फिर से
वरक़ किताबों के फिर से महके

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

मुहब्बतों की दुकाँ नहीं है
वतन नहीं है मकाँ नहीं है
क़दम का मीलों निशाँ नहीं है
मगर बता ये कहाँ नहीं है

यही है फूलों की मुस्कुराहट
यही है रिश्तों की जगमगाहट
यही है लोरी की गुनगुनाहट
यही है पायल की नर्म आहट

कहीं पे गीता, कुरान है ये
कहीं पे पूजा, अज़ान है ये
सदाक़तों की ज़ुबान है ये                                 (सदाक़तों = सच्चाइयों)
खुला-खुला आसमान है ये

तरक्कियों का समाज जागा
कि बालियों में अनाज जागा
क़ुबूल होने लगी है मन्नत
धरा को तकने लगी है जन्नत

....जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत

-आलोक श्रीवास्तव

Friday, October 19, 2012

आग पानी हुई, हुई, न हुई
मेहरबानी हुई, हुई, न हुई
कौन जाने फ़िज़ाए-जन्नत में
जिंदगानी हुई, हुई, न हुई
आप हों, हम हों, सारा आलम हो
ऋतु सुहानी हुई, हुई, न हुई
सरफिरे दिल के बादशाहों की
राजधानी हुई, हुई, न हुई
'रंग' हाज़िर है बज़्मे याराँ में
क़द्रदानी हुई, हुई, न हुई
-बलबीरसिंह 'रंग'

Friday, October 12, 2012

तेरा मेरा नाम लिखा था जिन पर तूने बचपन में
उन पेड़ों से आज भी तेरे हाथ की खुशबू आती है
जिस मिटटी पर मेरी माँ ने पैर धरे थे ऐ 'शाहिद'
उस मिटटी से जन्नत के बागात की खुशबू आती है
-डॉ शाहिद मीर