Sunday, February 24, 2013

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

वो देखो कैसा हुआ उजाला
वो ख़ुशबुओं ने चमन सँभाला
वो मस्जिदों में खिला तबस्सुम
वो मुस्कुराया है फिर शिवाला

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

तो जन्नतों से सलाम आये
पयम्बरों के पयाम आये                              (पयम्बर = संदेशवाहक), (पयाम = संदेश)
फ़रिश्ते कौसर के जाम लाये                        (कौसर = जन्नत की एक नहर का नाम)
हवा में दीपक से झिलमिलाये

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

तो लब गुलाबों के फिर से महके
नगर शबाबों के फिर से महके
किसी ने रक्खा है फूल फिर से
वरक़ किताबों के फिर से महके

जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत ....

मुहब्बतों की दुकाँ नहीं है
वतन नहीं है मकाँ नहीं है
क़दम का मीलों निशाँ नहीं है
मगर बता ये कहाँ नहीं है

यही है फूलों की मुस्कुराहट
यही है रिश्तों की जगमगाहट
यही है लोरी की गुनगुनाहट
यही है पायल की नर्म आहट

कहीं पे गीता, कुरान है ये
कहीं पे पूजा, अज़ान है ये
सदाक़तों की ज़ुबान है ये                                 (सदाक़तों = सच्चाइयों)
खुला-खुला आसमान है ये

तरक्कियों का समाज जागा
कि बालियों में अनाज जागा
क़ुबूल होने लगी है मन्नत
धरा को तकने लगी है जन्नत

....जो हममें-तुममें हुई मुहब्बत

-आलोक श्रीवास्तव

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