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Friday, February 15, 2019

इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

संतान हँसे तो कैसे हँसे
इस वक़्त है माता ख़तरे में
संसार के पर्बत का राजा
है अपना हिमाला ख़तरे में
है सामना कितने ख़तरों का
है देश की सीमा ख़तरे में
ऐ दोस्त वतन से घात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

मेहंदी हुई पीली कितनों की
सिंदूर लुटे हैं कितनों के
हैं चूड़ियाँ ठंडी कितनों की
अरमान जले हैं कितनों के
इस चीन के ज़ालिम हाथों से
संसार फुंके हैं कितनों के
मुस्कान की तू बरसात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

मत काट कपट कर माता से
देना है जो कुछ ईमान से दे
ये प्रश्न वतन की लाज का है
जी खोल के दे जी जान से दे
गौरव की हिफ़ाज़त कर अपने
दे धन भी तो प्यारे आन से दे
तू दान न दे ख़ैरात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

जिस घर में बरसता था जीवन
छाई है वहाँ पर वीरानी
बेवा हुईं कितनी सुंदरियाँ
मारे गए कितने सेनानी
क्यूँ जोश नहीं आता तुझ को
है ख़ून रगों में या पानी
आज़ादी के दिन को रात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

सुनते हैं मुसीबत आएगी
आएगी तो देखा जाएगा
जिस ने हमें कायर समझा है
उस देश से समझा जाएगा
हर शोख़ अदा से खेल चुके
अब ख़ून से खेला जाएगा
ऐसे में हमें बे-हात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

अब बैंड पे गाया जाएगा
ये साज़ न छेड़े जाएँगे
ले रख दे ठिकाने से ये ग़ज़ल
मरने से बचे तो गाएँगे
है साथ हमारे सच्चाई
हम पा के विजय मुस्काएँगे
जीती हुई बाज़ी मात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

-नज़ीर बनारसी