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Sunday, August 25, 2019

तेरे आने का इंतिज़ार रहा
उम्र भर मौसम-ए-बहार रहा

तुझ से मिलने को बे-क़रार था दिल
तुझ से मिल कर भी बे-क़रार रहा

-रसा चुग़ताई

Thursday, July 18, 2019

कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़
कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी
- हसरत जयपुरी

Tuesday, April 23, 2019

हर तरफ़ यार का तमाशा है

हर तरफ़ यार का तमाशा है
उस के दीदार का तमाशा है

इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त
जीत और हार का तमाशा है

ख़ल्वत-ए-इंतिज़ार में उस की
दर-ओ-दीवार का तमाशा है

(ख़ल्वत-ए-इंतिज़ार = इंतज़ार की तन्हाई)

सीना-ए-दाग़ दाग़ में मेरे
सहन-ए-गुलज़ार का तमाशा है

(सहन-ए-गुलज़ार = फूलों के बगीचे का आँगन)

है शिकार-ए-कमंद-ए-इश्क़ 'सिराज'
इस गले हार का तमाशा है

-सिराज औरंगाबादी

Wednesday, February 27, 2019

फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का
-अमीर मीनाई

(वादा-ए-वस्ल = मिलन का वादा)

Tuesday, January 1, 2019

आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में

आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में
सदियाँ गुज़र गई हैं इसी इंतिज़ार में

(ख़िज़ाँ = पतझड़)

छिड़ते ही साज़-ए-बज़्म में कोई न था कहीं
वो कौन था जो बोल रहा था सितार में

ये और बात है कोई महके कोई चुभे
गुलशन तो जितना गुल में है उतना है ख़ार में

अपनी तरह से दुनिया बदलने के वास्ते
मेरा ही एक घर है मिरे इख़्तियार में

(इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

तिश्ना-लबी ने रेत को दरिया बना दिया
पानी कहाँ था वर्ना किसी रेग-ज़ार में

(तिश्ना-लबी =प्यास), (रेग-ज़ार = रेगिस्तान)

मसरूफ़ गोरकन को भी शायद पता नहीं
वो ख़ुद खड़ा हुआ है क़ज़ा की क़तार में

(मसरूफ़ = काम में लगा हुआ, संलग्न, Busy), (गोरकन = कब्र खोदनेवाला), (क़ज़ा = मौत)

-निदा फ़ाज़ली

Wednesday, December 26, 2018

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख

(ख़िज़ाँ = पतझड़),

घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख

पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख

-निदा फ़ाज़ली

Sunday, December 23, 2018

रिश्तों का ए'तिबार वफ़ाओं का इंतिज़ार
हम भी चराग़ ले के हवाओं में आए हैं
-निदा फ़ाज़ली

Tuesday, December 6, 2016

उसका ख़याल दिल में उतरता चला गया

उसका ख़याल दिल में उतरता चला गया
मेरे सुख़न में रंग वो भरता चला गया

इक एतिबार था कि जो टूटा नहीं कभी
इक इन्तिज़ार था जो मैं करता चला गया

ठहरा रहा विदाअ़ का लम्ह़ा तमाम उम्र
और वक़्त अपनी रौ में गुज़रता चला गया

जितना छुपाता जाता था मैं अपने आपको
उतना ही आइने में उभरता चला गया

मुझको कहाँ नसीब थी मौत एक बार की
आता रहा वो याद मैं मरता चला गया

यकजा कभी न हो सका मैं अपनी ज़ात में
खुद को समेटने में बिखरता चला गया

- राजेश रेड्डी

Friday, October 21, 2016

पिता

पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है
पिता सृष्टि में निर्माण की अभिव्यक्ति है

पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है
पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है

पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है
पिता धौंस से चलना वाला प्रेम का प्रशासन है

पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है
पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है

पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है

पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं

पिता से परिवार में प्रतिपल राग है
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है

पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है

पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है
पिता रक्त में दिये हुए संस्कारों की मूर्ति है

पिता एक जीवन को जीवन का दान है
पिता दुनिया दिखाने का एहसान है

पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है

तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो
पिता का अपमान नहीं उनपर अभिमान करो

क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई पाट नहीं सकता
और ईश्वर भी इनके आशिषों को काट नहीं सकता

विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है

विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्राएं व्यर्थ हैं
यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं

वो खुशनसीब हैं, माँ-बाप जिनके साथ होते हैं
क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं

-ओम व्यास ओम



Tuesday, May 31, 2016

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे
बस एक बार ज़मीर उसको शर्मसार करे

कई हज़ार तरीक़े हैं ख़ुदखुशी के मियाँ
बशर को अब नहीं लाज़िम किसी को प्यार करे

(बशर = इंसान)

हरेक बात पे तकरार ही नहीं अच्छी
कभी तो प्यार का अन्दाज़ इख़्तियार करे

सुना है उसको अज़ाबों का कोई ख़ौफ़ नहीं
हमारा ज़िक्र भी ज़ालिम कभी-कभार करे

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

हमारे बाद रक़ीबों पे कोई क़ैद न हो
किसी भी हीले से जो चाहे ज़िक्रे-यार करे

किसी भी हाल में जी लेंगे बेहया होकर
कहाँ तलक कोई मरने का इन्तज़ार करे

-कांतिमोहन 'सोज़'

Friday, February 26, 2016

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा
जो मुझ पे होता नहीं है राज़ आश्कार मेरा

(फ़लक = आसमान), (ग़ुबार = गर्द, धूल, मन में दबाया हुआ क्रोध), (आश्कार = स्पष्ट, प्रकट, खुला हुआ)

तमाम दुनिया सिमट न जाए मिरी हदों में
कि हद से बढ़ने लगा है अब इंतिशार मेरा

(इंतिशार = फैलना, बिखरना)

धुआँ सा उठता है किस जगह से मैं जानता हूँ
जलाता रहता है मुझको हर पल शरार मेरा

(शरार = चिंगारी)

बदल रहे हैं सभी सितारे मदार अपना
मिरे जुनूँ पे टिका है दार-ओ-मदार मेरा

(मदार = दौरा करने का रास्ता, भ्रमण मार्ग), (दार-ओ-मदार = निर्भरता)

किसी के रस्ते पे कैसे नज़रें जमाए रक्खूँ
अभी तो करना मुझे है ख़ुद इंतिज़ार मेरा

तिरी इताअत क़ुबूल कर लूँ भला मैं कैसे
कि मुझपे चलता नहीं है ख़ुद इख़्तियार मेरा

(इताअत = हुक्म मानना, आज्ञापालन),  (इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

बस इक पल में किसी समुन्दर में जा गिरूंगा
अभी सितारों में हो रहा है शुमार मेरा

(शुमार = गिनती, हिसाब)

- आलम खुर्शीद

Wednesday, February 24, 2016

थपक-थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं

थपक-थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं
वो ख़्वाब हम को हमेशा जगाते रहते हैं

उम्मीदें जागती रहती हैं, सोती रहती हैं
दरीचे शम्मा जलाते-बुझाते रहते हैं

(दरीचे = खिड़कियां, झरोखे)

न जाने किस का हमें इन्तिज़ार रहता है
कि बाम-ओ-दर को हमेशा सजाते रहते हैं

(बाम-ओ-दर = छत और दरवाज़ा)

किसी को खोजते हैं हम किसी के पैकर में
किसी का चेहरा किसी से मिलाते रहते हैं

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख)

वो नक़्श-ए-ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होता
तमाम उम्र जिसे हम बनाते रहते हैं

(नक़्श-ए-ख़्वाब = स्वप्न की तस्वीर), (मुकम्मल = सम्पूर्ण, पूरा)

उसी का अक्स हर इक रंग में झळकता है
वो एक दर्द जिसे हम छुपाते रहते हैं

(अक्स = प्रतिबिम्ब, छाया, चित्र)

हमें ख़बर है दोबारा कभी न आएंगे
गए दिनों को मगर हम बुलाते रहते हैं

ये खेल सिर्फ़ तुम्हीं खेलते नहीं 'आलम'
सभी हवा में लकीरें बनाते रहते हैं

- आलम खुर्शीद

Friday, June 5, 2015

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँनिसार चले गए

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँनिसार चले गए
तेरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए

(जाँनिसार = अपने प्राण न्यौछावर करने वाला), (सर-ए-रहगुज़ार = रास्ते में चलने वाले)

तेरी कज़-अदाई से हार के शब-ए-इंतज़ार चली गई
मेरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मेरे ग़मगुसार चले गए

(कज़-अदाई = रूखापन), (शब-ए-इंतज़ार = इंतज़ार की रात), (ज़ब्त-ए-हाल = अपना हाल प्रकट न होने देना), (ग़मगुसार = हमदर्द, दुःख बंटानेवाला)

न सवाल-ए-वस्ल, न अर्ज़-ए-ग़म, न हिकायतें, न शिकायतें
तेरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए

(सवाल-ए-वस्ल = मिलने का प्रश्न), (अर्ज़-ए-ग़म = दुःख का बयान), (हिकायतें = बातें, किस्से, हाल), (अहद = समय, वक़्त, युग), (दिल-ए-ज़ार = दुखी/ बेबस दिल), (इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

ये हमीं थे जिनके लिबास पर सर-ए-राह सियाही लिखी गई
यही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए

(सर-ए-राह = रास्ते में, सबके सामने), (सर-ए-बज़्म-ए-यार = प्रियतम की महफ़िल में)

न रहा जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्या
जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गए

(जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा = प्यार करने का पागलपन/ उन्माद), (रसन = रस्सी), (दार = सूली, फाँसी)


-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

https://www.youtube.com/watch?v=nrGaeg_PXsI


Sunday, April 19, 2015

लाख आफ़ताब पास से होकर गुज़र गए
हम बैठे इंतज़ार-ए-सहर देखते रहे
-जिगर मुरादाबादी

(आफ़ताब =  सूरज), (इंतज़ार-ए-सहर = सुबह का इंतज़ार)

 

Monday, October 20, 2014

तुम आए हो न शब-ए-इंतज़ार गुज़री है

तुम आए हो न शब-ए-इंतज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार-बार गुज़री है

(शब-ए-इंतज़ार = इंतज़ार की रात), (सहर = सुबह)

जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री है
अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है

(ब-कार = काम करते हुए)

हुई है हज़रते-नासेह से गुफ़्तगू जिस शब
वो शब ज़रूर सरे-कू-ए-यार गुज़री है

(हज़रते-नासेह = उपदेशक महोदय), (शब = रात), (सरे-कू-ए-यार = यार की गली में)

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुज़री है

न गुल खिले हैं, न उनसे मिले, न मय पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है

चमन पे ग़ारते-गुलचीं से जाने क्या गुज़री
क़फ़स से आज सबा बेक़रार गुज़री है

(ग़ारते-गुलचीं = फूल चुनने वाले की लाई हुई तबाही), (क़फ़स = पिंजरा), (सबा = बयार, हवा)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नूरजहाँ/ Noorjahan



अमानत अली/ Amanat Ali



Dr. Radhika Chopda/ डा राधिका चोपड़ा 

Saturday, October 18, 2014

नहीं निगाह में मंज़िल, तो जुस्तजू ही सही

नहीं निगाह में मंज़िल, तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर, तो आरज़ू ही सही

(जुस्तजू = तलाश, खोज), (विसाल = मिलन), (मयस्सर = प्राप्त, उपलब्ध)

न तन में ख़ून फ़राहम, न अश्क़ आँखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाज़िब है, बे-वज़ू ही सही

(फ़राहम = संग्रहीत, इकठ्ठा), (अश्क़ = आँसू), (वाज़िब = मुनासिब, उचित, ठीक)

किसी तरह तो जमे बज़्म, मैकदे वालों
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हा-ओ-हू ही सही

(बज़्म = महफ़िल), (हा-ओ-हू = दुःख और शून्य/ सुनसान)

गर इंतज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तगू ही सही

(वादा-ए-फ़र्दा = आने वाले कल का वादा)

दयार-ए-ग़ैर में महरम अगर नहीं कोई
तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू ही सही

(दयार-ए-ग़ैर = अजनबी का घर), (महरम = अंतरंग मित्र, सुपरिचित, वह जिसके साथ बहुत घनिष्टता हो)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


आबिदा परवीन/ Abida Parveen




Saturday, March 8, 2014

हाए लोगों की करम-फरमाइयाँ

हाए लोगों की करम-फरमाइयाँ
तोहमतें, बदनामियाँ, रूसवाइयाँ

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ

क्या ज़माने में यूँ ही कटती है रात
करवटें, बेताबियाँ, अँगड़ाइयाँ

क्या यही होती है शाम-ए-इंतिज़ार
आहटें, घबराहटें, परछाइयाँ

एक रिंद-ए-मस्त की ठोकर में है
शाहियाँ, सुल्तानियाँ, दाराइयाँ

[(रिंद = शराबी), (दाराई = बादशाहत)]

एक पैकर में सिमट कर रह गई
खूबियाँ, ज़ेबाइयाँ, रानाइयाँ

[(पैकर = चेहरा, मुख), (ज़ेबा = शोभा देने वाला), (रानाई = बनाव-श्रृंगार)]

रह गई एक तिफ़्ल-ए-मक़तब के हुजूर
हिकमतें, आगाहियाँ, दानाइयाँ

[(तिफ़्ल-ए-मक़तब = बच्चों की पाठशाला), (हिकमत = विद्या, तत्वज्ञान), (आगाहियाँ = जानकारियां, सूचनाएँ), (दानाई = बुद्धिमत्ता, अक्लमंदी)]

ज़ख्म दिल के फिर हरे करने लगी
बदलियाँ, बरखा रूतें, पुरवाइयाँ

दीदा-ओ-दानिस्ता उन के सामने
लग्ज़िशें, नाकामियाँ, पसपाइयाँ

[(दीदा-ओ-दानिस्ता = देख और समझकर, जानबूझ कर), (लग्ज़िशें = गलतियाँ, भूलें), (पसपाइयाँ = पराजय)]

मेरे दिल की धड़कनों में ढल गई
चूड़ियाँ, मौसीकियाँ, शहनाइयाँ

उनसे मिलकर और भी कुछ बढ़ गई
उलझनें, फिक्रें, कयास-आराइयाँ

(कयास-आराइयाँ = अनुमान/ अटकलें लगाना)

'कैफ़' पैदा कर समुंदर की तरह
वुसअतें, ख़ामोशियाँ, गहराइयाँ

(वुसअत = विस्तार, शक्ति, सामर्थ्य)

-कैफ़ भोपाली

Tuesday, December 10, 2013

जो सफ़र इख्तियार करते हैं
वो ही दरिया को पार करते हैं
चलके तो देखिये, मुसाफिर का
रास्ते इंतज़ार करते हैं
-नवाज़ देवबंदी

Thursday, June 13, 2013

ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए

ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए
आ जा कि ज़हर खाए ज़माने गुज़र गए

ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

(यास = नाउम्मीदी, निराशा), (नजात = मुक्ति, छुटकारा)

क्या लाइक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तो
पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए

(लाइक़-ए-सितम = अत्याचार या ज़ुल्म के योग्य)

जान-ए-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं
आ जा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए

क्या क्या तवक़्क़ुआत थीं आहों से ऐ 'ख़ुमार'
ये तीर भी चलाए ज़माने गुज़र गए

(तवक़्क़ुआत = उम्मीदें, अपेक्षाएँ, आशाएं)

-ख़ुमार बाराबंकवी

Tuesday, June 11, 2013

जिस मोड़ पर किये थे हमने क़रार बरसों
उससे लिपट के रोए दीवानावार बरसों

तुम गुलसिताँ से आये ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ ही लाये
हमने कफ़स में देखी फ़स्ल-ए-बहार बरसों

होती रही है यूँ तो बरसात आँसूओं की
उठते रहे हैं फिर भी दिल से ग़ुबार बरसों

वो संग-ए-दिल था कोई बेगाना-ए-वफ़ा था
करते रहें हैं जिसका हम इंतज़ार बरसों

-सुदर्शन फ़ाकिर