Tuesday, January 1, 2019

आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में

आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में
सदियाँ गुज़र गई हैं इसी इंतिज़ार में

(ख़िज़ाँ = पतझड़)

छिड़ते ही साज़-ए-बज़्म में कोई न था कहीं
वो कौन था जो बोल रहा था सितार में

ये और बात है कोई महके कोई चुभे
गुलशन तो जितना गुल में है उतना है ख़ार में

अपनी तरह से दुनिया बदलने के वास्ते
मेरा ही एक घर है मिरे इख़्तियार में

(इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

तिश्ना-लबी ने रेत को दरिया बना दिया
पानी कहाँ था वर्ना किसी रेग-ज़ार में

(तिश्ना-लबी =प्यास), (रेग-ज़ार = रेगिस्तान)

मसरूफ़ गोरकन को भी शायद पता नहीं
वो ख़ुद खड़ा हुआ है क़ज़ा की क़तार में

(मसरूफ़ = काम में लगा हुआ, संलग्न, Busy), (गोरकन = कब्र खोदनेवाला), (क़ज़ा = मौत)

-निदा फ़ाज़ली

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