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Monday, December 11, 2017

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े

(फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ = नीची और ऊँची जगहों की चिंता)

साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर
मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े

(ग़म-ए-तिश्ना-लबी = प्यासे होठों का दुःख)

मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह   
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े

-कैफ़ी आज़मी
         


Ustad Munnawar Ali Khan
Begum Akhtar 

Sunday, May 17, 2015

अन्देशे

रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा

(अज़ीयत = व्यथा, यातना), (सोज़-ए-मोहब्बत = प्रेम को आँच (पीड़ा))

वो कहाँ और कहाँ क़ाहिश-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ
उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमाँ
उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमाँ
तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा

(क़ाहिश-ए-ग़म = दुःख की कमी), (सोज़िश-ए-जाँ = जान का जलना), (नुक़ूश-ए-हिरमाँ = निराशा के चिन्ह), (एहसास-ए-लतीफ़ = कोमल भावनाएं), (शिकस्त-ए-अरमाँ = अभिलाषाओं का भंग होना), (तानाज़न = व्यंग करता हुआ)


झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं
मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं
छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं
अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा

(जवाँ-साल = नयी), (जबीं = माथा)

दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होंगे
अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होंगे
बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होंगे
इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा

(अफ़साने = कहानियाँ), (अश्क = आँसू), (हर्फ़ = अक्षर), (जबीं = माथा)

उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
मिट के इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा

(नक़्श = आकृति)

बे-महल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होंगे
ग़म पशेमाँ तबस्सुम में ढल आये होंगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा

(बे-महल = बे-मौका, अनुचित समय पर), (पशेमाँ = लज्जित), (तबस्सुम = मुस्कराहट)


ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी
रूठे जलवों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी
बर्क़ अश्वों ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा

(ख़िज़ाँ = पतझड़), (बर्क़ = बिजली), (अश्वों = हाव-भाव)

होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा
ज़हर चुपके से दवा जान के ख़ाया होगा

-कैफ़ी आज़मी




 

Saturday, December 6, 2014

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

(दहर = ज़माना, समय, युग)

इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी
यूं मौत को सीने से लगाता नहीं कोई

-कैफ़ी आज़मी

Sunday, July 21, 2013

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

(बशर = इंसान, आदमी)

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

(तेग़ = तलवार)

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले, धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों
मुझे ख़ुद अपने क़दम का निशाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

-कैफ़ी आज़मी

[मास्को, सितंबर 1974]

Wednesday, July 17, 2013

औरत

उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यकरंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ वलवल:-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क़ हमआवाज़-ओ-हमआहंग हैं आज
         जिसमें जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(क़ल्ब-ए-माहौल = वातावरण का मर्मस्थल, ह्रदय), (लरज़ाँ = कंपित), (शरर-ए-जंग = युद्ध की चिंगारियाँ), (ज़ीस्त = जीवन), (आबगीनों = शराब की बोतल), (वलवल:-ए-संग = पत्थर की उमंग), (हमआवाज़-ओ-हमआहंग = एक स्वर और एक लय रखनेवाले)]

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमददुन की बहार
तेरी नज़रों में है तहज़ीब-ओ-तरक्क़ी का मदार
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार
ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम-ओ-तअय्युन का हिसार
         कौंद कर मजलिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(फ़िरदौस-ए-तमददुन = सभ्यता/ शहरों का बाग), (मदार  = धुरी), (गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार = आकांक्षा और आचरण का पालना/ झूला), (ता-ब-कै = कहाँ तक, कब तक, ताकि), (वहम =हर समय की इच्छा ), (तअय्युन = निश्चय करना, आस्तित्व), (हिसार = नगर का परकोटा, क़िला)]


तू कि बेजान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बनके सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है
         ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(सीमाब =पारा), (ज़र्फ़ = पात्र), (ज़ीस्त = जीवन), (आहनी = लोहा)]

ज़िन्दगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है नकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
         उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(जेहद = संघर्ष), (नकहत = महक), (ख़म-ए-गेसू = बालों का घुमाव), (रविश = रंग-ढंग)]

गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिये
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिये
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिये
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिये
         रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(गोशे-गोशे = कोने-कोने), (क़ज़ा = मृत्यु), (क़हर = प्रलय, विनाश)]

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है, दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
         अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(तारीख़ = इतिहास), (अश्कफ़िशानी = आँसू बहाना), (उनवान = शीर्षक)

तोड़कर रस्म का बुत बन्द-ए-क़यामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़्स के खेंचे हुए हल्क़-ए-अज़मत से निकल
क़ैद बन जाए मुहब्बत तो, मुहब्बत से निकल
         राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(बन्द-ए-क़यामत = प्राचीनता के बन्धन), (ज़ोफ़-ए-इशरत = ऐश्वर्य की दुर्बलता), (वहम-ए-नज़ाकत = कोमलता का भ्रम), (नफ़्स = आकांक्षा, कामना), (हल्क़-ए-अज़मत = महानता का वृत या घेरा)]

तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़:-ए-पंद भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध भी तोड़
तौक़ यह भी है ज़मर्रूद का गुलूबन्द भी तोड़
तोड़ पैमान:-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द भी तोड़
         बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

[(अज़्म-शिकन = संकल्प भंग करने वाला), (दग़दग़:-ए-पंद = उपदेश की आशंका), (पैमान:-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द = समझदार पुरुषों के मापदंड)]

तू फ़लातून व अरस्तू है तू ज़ुहरा परवीं
तेरे क़ब्ज़े में गर्दूं, तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ, उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से ज़बीं
मैं भी रुकने का नहीं, वक़्त भी रुकने का नहीं
         लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
         उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे

(फ़लातून = अफ़लातून (प्लैटो) यूनान देश का सुविख्यात दार्शनिक। उसका मूल ग्रीक भाषा का नाम प्लातोन है; इसी का अंग्रेजी रूपांतर प्लैटो और अरबी रूपांतर अफ़लातून है),

(अरस्तू = अरस्तु यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे।)

(ज़ुहरा = शुक्र ग्रह {सुन्दरता का प्रतीक}), (परवीं = कृतिका नक्षत्र {सुन्दरता का प्रतीक}), (गर्दूं = आकाश), (पा-ए-मुक़द्दर = भाग्य के चरण), (ज़बीं = माथा)

-कैफ़ी आज़मी





Monday, May 13, 2013

आज सोचा तो आँसू भर आए,
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराये ।
-कैफ़ी आज़मी

Friday, September 28, 2012

एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम
कैसे भूलूं किसी का वो पहला सलाम
-
कैफ़ी आज़मी
इसको मज़हब कहो, या सियासत कहो,
ख़ुदकुशी का हुनर तुम सिखा तो चले

बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें,
मैं कहाँ दफ़्न हूँ, कुछ पता तो चले
-
कैफ़ी आज़मी



Isko mazhab kaho, ya siyasat kaho,
khudkushi ka hunar tum sikha to chale.

Belche lao, kholo zameen ki tahen,
Main kahan dafan hoon, kuch pata to chale.
-Kaifi Aazmi

Meaning:

Call it religion or politics, whatever you feel
You have taught us the way to commit suicide
Bring some shovels, dig up the earth below
and where I am buried, let me know

Wednesday, September 26, 2012

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
की तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में

ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल
अब और देर है कितनी बहार आने में

-कैफ़ी आज़मी

Tuesday, September 25, 2012

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा,
सफ़र एक उम्र का पल में तमाम कर लूँगा।

नज़र मिलाई तो पूछूंगा इश्क़ का अंजाम,
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा।

जहान-ए-दिल पे हुकूमत तुम्हे मुबारक हो,
रही शिकस्त तो वो अपने नाम कर लूँगा।

- कैफ़ी आज़मी