रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा
(अज़ीयत = व्यथा, यातना), (सोज़-ए-मोहब्बत = प्रेम को आँच (पीड़ा))
वो कहाँ और कहाँ क़ाहिश-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ
उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमाँ
उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमाँ
तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा
(क़ाहिश-ए-ग़म = दुःख की कमी), (सोज़िश-ए-जाँ = जान का जलना), (नुक़ूश-ए-हिरमाँ = निराशा के चिन्ह), (एहसास-ए-लतीफ़ = कोमल भावनाएं), (शिकस्त-ए-अरमाँ = अभिलाषाओं का भंग होना), (तानाज़न = व्यंग करता हुआ)
झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं
मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं
छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं
अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा
(जवाँ-साल = नयी), (जबीं = माथा)
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होंगे
अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होंगे
बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होंगे
इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
क़ल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यकरंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ वलवल:-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क़ हमआवाज़-ओ-हमआहंग हैं आज
जिसमें जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
[(क़ल्ब-ए-माहौल = वातावरण का मर्मस्थल, ह्रदय), (लरज़ाँ = कंपित), (शरर-ए-जंग = युद्ध की चिंगारियाँ), (ज़ीस्त = जीवन), (आबगीनों = शराब की बोतल), (वलवल:-ए-संग = पत्थर की उमंग), (हमआवाज़-ओ-हमआहंग = एक स्वर और एक लय रखनेवाले)]
तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमददुन की बहार
तेरी नज़रों में है तहज़ीब-ओ-तरक्क़ी का मदार
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार
ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम-ओ-तअय्युन का हिसार
कौंद कर मजलिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
[(फ़िरदौस-ए-तमददुन = सभ्यता/ शहरों का बाग), (मदार = धुरी), (गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार = आकांक्षा और आचरण का पालना/ झूला), (ता-ब-कै = कहाँ तक, कब तक, ताकि), (वहम =हर समय की इच्छा ), (तअय्युन = निश्चय करना, आस्तित्व), (हिसार = नगर का परकोटा, क़िला)]
तू कि बेजान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बनके सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है
ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िन्दगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है नकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिये
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिये
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिये
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिये
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है, दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़कर रस्म का बुत बन्द-ए-क़यामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़्स के खेंचे हुए हल्क़-ए-अज़मत से निकल
क़ैद बन जाए मुहब्बत तो, मुहब्बत से निकल
राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
[(बन्द-ए-क़यामत = प्राचीनता के बन्धन), (ज़ोफ़-ए-इशरत = ऐश्वर्य की दुर्बलता), (वहम-ए-नज़ाकत = कोमलता का भ्रम), (नफ़्स = आकांक्षा, कामना), (हल्क़-ए-अज़मत = महानता का वृत या घेरा)]
तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़:-ए-पंद भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध भी तोड़
तौक़ यह भी है ज़मर्रूद का गुलूबन्द भी तोड़
तोड़ पैमान:-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द भी तोड़
बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
[(अज़्म-शिकन = संकल्प भंग करने वाला), (दग़दग़:-ए-पंद = उपदेश की आशंका), (पैमान:-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द = समझदार पुरुषों के मापदंड)]
तू फ़लातून व अरस्तू है तू ज़ुहरा परवीं
तेरे क़ब्ज़े में गर्दूं, तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ, उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से ज़बीं
मैं भी रुकने का नहीं, वक़्त भी रुकने का नहीं
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मिरी जान! मिरे साथ ही चलना है तुझे
(फ़लातून = अफ़लातून (प्लैटो) यूनान देश का सुविख्यात दार्शनिक। उसका मूल ग्रीक भाषा का नाम प्लातोन है; इसी का अंग्रेजी रूपांतर प्लैटो और अरबी रूपांतर अफ़लातून है),
(अरस्तू = अरस्तु यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे।)
(ज़ुहरा = शुक्र ग्रह {सुन्दरता का प्रतीक}), (परवीं = कृतिका नक्षत्र {सुन्दरता का प्रतीक}), (गर्दूं = आकाश), (पा-ए-मुक़द्दर = भाग्य के चरण), (ज़बीं = माथा)
-कैफ़ी आज़मी
Monday, May 13, 2013
आज सोचा तो आँसू भर आए,
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराये ।
-कैफ़ी आज़मी