एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं
जिस तरह सीप के सीने गुहर होता है
जिस तरह रात के रानी की महक होती है
जिस तरह साँझ की वंशी का असर होता है
जिस तरह उठता है आकाश में इक इंद्रधनुष
जैसे पीपल के तले कोई दिया जलता है
जैसे मंदिर में कहीं दूर घंटियाँ बजतीं
जिस तरह भोर के पोखर में कमल खिलता है
जिस तरह खुलता हो सन्दूक पुराना कोई
जिस तरह उसमें से ख़त कोई पुराना निकले
जैसे खुल जाय कोई चैट की खिड़की फिर से
ख़ुद-बख़ुद जैसे कोई मुँह से तराना निकले
जैसे खँडहर में बची रह गयी बुनियादें हैं
एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं
-अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'
जिस तरह सीप के सीने गुहर होता है
जिस तरह रात के रानी की महक होती है
जिस तरह साँझ की वंशी का असर होता है
जिस तरह उठता है आकाश में इक इंद्रधनुष
जैसे पीपल के तले कोई दिया जलता है
जैसे मंदिर में कहीं दूर घंटियाँ बजतीं
जिस तरह भोर के पोखर में कमल खिलता है
जिस तरह खुलता हो सन्दूक पुराना कोई
जिस तरह उसमें से ख़त कोई पुराना निकले
जैसे खुल जाय कोई चैट की खिड़की फिर से
ख़ुद-बख़ुद जैसे कोई मुँह से तराना निकले
जैसे खँडहर में बची रह गयी बुनियादें हैं
एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं
-अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'