Friday, June 21, 2013

शहर हर रोज हादिसा लाया
जान अपनी मैं फिर बचा लाया ॥

मुफ़लिसी में बिके हुए कंगन
आज बाज़ार से उठा लाया ||

ख़त लिखा था तुम्हें जवानी में
कल जवाब उसका डाकिया लाया ॥

और थोड़ी सी बढ़ गयी साँसें
एक बच्चे को मैं घुमा लाया ||

देखकर फेर दी नज़र उसने
वक़्त कैसा ये, फ़ासला लाया ||

लाख कोशिश करो बिछुड़ने की
"फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया" ||

रात चुप थी, सितारे भी गुमसुम
चाँद जलती हुई शमा लाया ॥

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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