तेरे क़दमों पे सर होगा क़ज़ा सर पे खड़ी होगी
फिर उस सज्दे का क्या कहना अनोखी बंदगी होगी
(क़ज़ा = मौत)
तुम्हें दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी
(दानिस्ता = जान बूझ कर)
मज़ा आ जायेगा महशर में कुछ सुनने सुनाने का
ज़ुबाँ होगी हमारी और कहानी आप की होगी
(महशर = फैसले का दिन, क़यामत का दिन)
सर-ए-महफ़िल बता दूँगा सर-ए-महशर दिखा दूँगा
हमारे साथ तुम होगे ये दुनिया देखती होगी
(सर-ए-महफ़िल = भरी सभा में, सबके सामने), (सर-ए-महशर = क़यामत के दिन)
यही आलम रहा पर्दानशीनों का तो ज़ाहिर है
ख़ुदाई आप से होगी न हम से बंदगी होगी
(आलम = दशा, हालत), (ज़ाहिर = प्रकट)
त'अज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल मे अँगारे भरे थे लग गई होगी
-सीमाब अकबराबादी
रेशमा/ Reshma
अज़ीज़ मियाँ/ Aziz Miyan
जगजीत सिंह/ Jagjit Singh
Wednesday, June 11, 2014
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने,
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन,
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने
जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है,
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने
तुम नया ज़ख़्म लगाओ तुम्हें इस से क्या है,
भरने वाले हैं अभी ज़ख़्म पुराने कितने
-सीमाब अकबराबादी
Wednesday, May 8, 2013
सजदे करूँ, सवाल करूँ, इल्तजा करूँ,
यूँ दे तो कायनात मेरे काम की नहीं।
वो खुद अता करे तो जहन्नुम भी है बहिश्त,
माँगी हुई निजात मेरे काम की नहीं ।
-सीमाब अकबराबादी
Tuesday, April 30, 2013
इतना बुलंद कर नज़रे-जलवाख़्वाह को,
जलवे ख़ुद आयें ढूँढने तेरी निगाह को ।
-सीमाब अकबराबादी
(नज़रे-जलवाख़्वाह = जलवा देखने की ख़्वाहिश)
Sunday, March 24, 2013
है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू,
मैंने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे ।
[(हुसूल-ए-आरज़ू = इच्छा-पूर्ती), (तर्क-ए-आरज़ू = इच्छाओं का त्याग)]
-सीमाब अकबराबादी
Thursday, January 17, 2013
कहानी मेरी रूदादे-जहाँ मालूम होती है,
जो सुनता है उसी की दास्तां मालूम होती है।
-सीमाब अकबराबादी
(रूदादे-जहाँ = दुनिया की दशा/ दुनिया का हाल)
Monday, December 3, 2012
ख़ुदा और नाख़ुदा मिलकर डुबो दें यह तो मुमकिन है, मेरी वजहे-तबाही सिर्फ तूफ़ाँ हो नहीं सकता। -सीमाब अकबराबादी