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Monday, December 21, 2015

कुछ इस तरह से वफ़ा की मिसाल देता हूँ

कुछ इस तरह से वफ़ा की मिसाल देता हूँ
सवाल करता है कोई तो टाल देता हूँ

उसी से खाता हूँ अक्सर फ़रेब मंज़िल का
मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हूँ

तसव्वुरात की दुनिया भी खूब दुनिया है
मैं उसके ज़हन को अपने ख़याल देता हूँ

(तसव्वुरात = कल्पनायें, ख़यालात), (ज़हन = दिमाग़)

वो कायनात की वुसअत बयान करता है
मैं एक शेर ग़ज़ल का उछाल देता हूँ

(कायनात = सृष्टि, जगत, ब्रम्हांड), (वुसअत = विस्तार)

कहीं अज़ाब न बन जाये ज़िन्दगी 'मंसूर'
उसे मैं रोज़ एक उलझन में डाल देता हूँ

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

‪-मंसूर उस्मानी‬