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Wednesday, August 14, 2019

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
जीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते

कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते

आँखों में नमक है तो नज़र क्यूँ नहीं आता
पलकों पे गुहर हैं तो बिखर क्यूँ नहीं जाते

(गुहर = मोती)

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी
अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

ये बात अभी मुझ को भी मालूम नहीं है
पत्थर इधर आते हैं उधर क्यूँ नहीं जाते

तेरी ही तरह अब ये तिरे हिज्र के दिन भी
जाते नज़र आते हैं मगर क्यूँ नहीं जाते

(हिज्र = जुदाई)

अब याद कभी आए तो आईने से पूछो
'महबूब-ख़िज़ाँ' शाम को घर क्यूँ नहीं जाते

-महबूब ख़िज़ां