अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
इक नज़र मेरी तरफ भी, तेरा जाता क्या है
मेरी रुसवाई में वो भी हैं बराबर के शरीक
मेरे क़िस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है
पास रहकर भी ना पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है
उम्र भर अपने गिरेबान से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है
मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ, मगर इतना तो बता
देखकर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है
सफ़र-ए-शौक में क्यूँ कांपते हैं पांव तेरे
आँख रखता है तो फिर आँख चुराता क्या है
मर गये प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम
बुझ गयी बज़्म तो अब शम्मा जलाता क्या है
- शहज़ाद अहमद
इक नज़र मेरी तरफ भी, तेरा जाता क्या है
मेरी रुसवाई में वो भी हैं बराबर के शरीक
मेरे क़िस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है
पास रहकर भी ना पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है
उम्र भर अपने गिरेबान से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है
मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ, मगर इतना तो बता
देखकर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है
सफ़र-ए-शौक में क्यूँ कांपते हैं पांव तेरे
आँख रखता है तो फिर आँख चुराता क्या है
मर गये प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम
बुझ गयी बज़्म तो अब शम्मा जलाता क्या है
- शहज़ाद अहमद