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Tuesday, June 4, 2019

जब चलो साथ क़ाफ़िला रखना

जब चलो साथ क़ाफ़िला रखना
पर सफ़र अपना तुम जुदा रखना।

क्या ख़बर हाथ फिर बढ़ा दे वो
सुलह का तुम भी रास्ता रखना।

बेवफ़ा है ख़ुशी मिले न मिले
यूं ग़मों से भी वास्ता रखना।

आंसुओं से वो टूट जाएगा
तुम तो होठों पे कहकहा रखना।

अपनी शर्तों पे ज़िन्दगी जीना
अपने बच्चों को ये सिखा रखना।

मुश्किलों में भी काम आएँगे
दोस्तों का अता पता रखना।

जब भी मिलना गले किसी से तो
एक झीना सा फ़ासला रखना।

उसके आने की आस पे 'वाहिद'
रोज़ दहलीज़ पे दिया रखना।

- विकास वाहिद
१५ मई २०१९

Saturday, March 16, 2019

किसी और के हक़ की पाई न दे

किसी और के हक़ की पाई न दे
ख़ुदा हमको ऐसी कमाई न दे।

उसे बादशाही का फ़िर हक़ नहीं
जिसे सिसकियाँ ही सुनाई न दे।

निवाले मयस्सर हों सबके लिए
भले बस्तियां जगमगाई न दे।

(मयस्सर = उपलब्ध)

मिले हर परस्तिश को अपना ख़ुदा
यकीं को कभी जगहँसाई न दे।

(परस्तिश = बंदगी , पूजा)

मैं रखता नहीं घर में वो आईने
कमी मेरी जिसमें दिखाई न दे।

वो हो दोस्ती या मुहब्बत कहीं
दिलों में कभी बेवफ़ाई न दे।

जो कहना है अशआर ख़ुद ही कहें
ख़ुदाया मुझे ख़ुदसिताई न दे।

(ख़ुदसिताई = आत्म स्तुति)

अता कर मुझे ज़ब्त इतना ख़ुदा
विदा हो जो बेटी रुलाई न दे।

(ज़ब्त = सहन शक्ति)

- विकास "वाहिद"
०४-०३-२०१९

Friday, December 25, 2015

'तारिक़' यह रौशनी भी हुई कितनी बेवफ़ा
जिसने दिया जलाया उसी तक नहीं गई

-रियाज़ तारिक़ 

Monday, November 24, 2014

भुला दे मुझ को के बेवफ़ाई बजा है लेकिन
गँवा न मुझ को के मैं तेरी ज़िंदगी रहा हूँ

(बजा = उचित, मुनासिब, ठीक)

वो अजनबी बन के अब मिले भी तो क्या है 'मोहसिन'
ये नाज़ कम है के मैं भी उस का कभी रहा हूँ

-मोहसिन नक़वी

Sunday, December 1, 2013

कहूँ किस तरह मैं कि वो बेवफ़ा है
मुझे उसकी मजबूरियों का पता है

हवा को बहुत सरकशी का नशा है
मगर ये न भूले दिया भी दिया है

नज़र में है जलते मकानो मंज़र
चमकते है जुगनू तो दिल काँपता है

उन्हे भूलना या उन्हे याद करना
वो बिछड़े हैं जब से यही मशग़ला है

(मशग़ला = दिल-बहलाव)

गुज़रता है हर शक्स चेहरा छुपाए
कोई राह में आईना रख गया है
-खुमार बाराबंकवी

Sunday, June 2, 2013

ज़ख़्म जो आप की इनायत है इस निशानी को नाम क्या दे हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को नाम क्या दे हम

आप इल्ज़ाम धर गये हम पर एक एहसान कर गये हम पर
आप की ये मेहरबानी है मेहरबानी को नाम क्या दे हम

आपको यूँ ही ज़िन्दगी समझा धूप को हमने चाँदनी समझा
भूल ही भूल जिस की आदत है इस जवानी को नाम क्या दे हम

रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो ग़ुबार सा देखा
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबाँ निकला बेज़ुबानी को नाम क्या दे हम

-सुदर्शन फ़ाकिर
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तेरी दुहाई न दूँ
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी तुझे दिखाई न दूँ

तेरे बदन में धड़कने लगा हूँ दिल की तरह
ये और बात के अब भी तुझे सुनाई न दूँ

ख़ुद अपने आपको परखा तो ये नदामत है
के अब कभी उसे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई न दूँ

मुझे भी ढूँढ कभी मह्व-ए-आईनादारी
मैं तेरा अक़्स हूँ लेकिन तुझे दिखाई न दूँ
-अहमद फ़राज़

Sunday, May 5, 2013

आशना हो कर कभी नाआशना हो जायेगा

आशना हो कर कभी नाआशना हो जायेगा
क्या ख़बर थी एक दिन वो बेवफ़ा हो जायेगा

[(आशना = मित्र, दोस्त), (नाआशना = अजनबी)]

मैंने अश्क़ों को जो अपने रोक कर रक्खा, मुझे
डर था इनके साथ तेरा ग़म जुदा हो जायेगा

क्या है तेरा क्या है मेरा गिन रहा है रात-दिन
आदमी इस कश्मकश में ही फ़ना हो जायेगा

मैं अकेला हूँ जो सारी दुनिया को है फ़िक्र, पर
तारों के संग चल पड़ा तो क़ाफ़िला हो जायेगा
.
मुझको कोई ख़ौफ़ रुसवाई का यूँ तो है नहीं
लोग समझाते हैं मुझको तू बुरा हो जायेगा

मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो जाने क्या हो जायेगा

पत्थरों में 'दोस्त' किसको ढूँढता है हर पहर
प्यार से जिससे मिलेगा वो ख़ुदा हो जायेगा
-मानोशी

Wednesday, March 6, 2013

हरेक चेहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो,
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो।

न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो।

ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक, उसे बुरा न कहो।

हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो।

-राहत इन्दौरी

Sunday, February 24, 2013

मैं क्या करूँ मेरे क़ातिल न चाहने पर भी,
तेरे लिए मेरे दिल से दुआ निकलती है ।

वो ज़िन्दगी हो कि दुनिया 'फ़राज़' क्या कीजे,
कि जिससे इश्क़ करो बेवफ़ा निकलती है ।
-अहमद फ़राज़

Tuesday, February 12, 2013

ये ज़िन्दगी का मुसाफ़िर, ये बेवफ़ा लम्हा,
चला गया, तो कभी लौटकर न आएगा ।

'वसीम' अपने अंधेरों का ख़ुद इलाज करो,
कोई चराग़ जलाने इधर न आयेगा ।
-वसीम बरेलवी

Tuesday, October 23, 2012

अपने हर लफ़्ज़् का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है मेरा अह्द-ए-वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?

(अह्द-ए-वफ़ा = वादा निभाने की प्रतिज्ञा/ वचन)

-वसीम बरेलवी

Saturday, October 6, 2012

सज़ा का हाल सुनाये जज़ा की बात करें
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें
(जज़ा = बदला)
उन्हें पता भी चले और वो ख़फ़ा भी न हो
इस एहतियात से क्या मज़ा की बात करें

हमारे अहद की तहज़ीब में क़बा ही नहीं
अगर क़बा हो तो बन्द-ए-क़बा की बात करें
[(अहद = प्रतिज्ञा, करार); (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा)]

हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाता
करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें

वफ़ाशियार कई हैं कोई हसीं भी तो हो
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें
-साहिर लुधियानवी

Friday, October 5, 2012

इस से पहले की बेवफ़ा हो जाएं
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएं

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएं?

हम भी मजबूरियों का उज्र करे
और कहीं और मुब्तला हो जाएं

[(उज्र = आपत्ति, विरोध, क्षमा-याचना); (मुब्तला = विपत्ति में फंसा हुआ, ग्रस्त)]

इश्क भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ किमीयाँ हो जाएं

[किमीयाँ = सोना बनाने की रासायनिक क्रिया]

अब के गर तू मिले की हम तुझसे
ऐसे लिपटे की तेरी कबा हो जाएं

[कबा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा]

बंदगी हमने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएं

-अहमद 'फ़राज़'

 Source: http://gunche.blogspot.in

Tuesday, October 2, 2012

किसी बेवफ़ा की खातिर ये जुनूं 'फ़राज़' कब तलक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
- अहमद फ़राज़


Friday, September 28, 2012

इन्सान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफा अफसोस मत करो
-
बशीर बद्र

Thursday, September 27, 2012

उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ


हम ख़ुल्द से निकल तो गये हैं पर ऐ ख़ुदा
इतने से वाक़ये का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उससे ज़रा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ


अब क्यों न ज़िन्दगी पे मुहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ


अब तक तो दिल का दिल से तार्रुफ़ न हो सका
माना कि उससे मिलना मिलाना बहुत हुआ


क्या-क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ


लो फिर तेरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहद "फ़राज़" तुझसे कहा ना बहुत हुआ

-अहमद फ़राज़