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Monday, November 16, 2020

वो साफ़-गो है, मगर बात का हुनर सीखे
बदन हसीं है तो क्या बे-लिबास आएगा
-अमरदीप सिंह

Wednesday, April 15, 2020

ज़िन्दगी इक तलाश है, क्या है?

ज़िन्दगी इक तलाश है, क्या है?
दर्द इसका लिबास है क्या है?

फिर हवा ज़हर पी के आई क्या,
सारा आलम उदास है, क्या है?

एक सच के हज़ार चेहरे हैं,
अपना-अपना क़यास है, क्या है

(क़यास = अन्दाज़ा)

जबकि दिल ही मुकाम है रब का,
इक जमीं फिर भी ख़ास है, क्या है

राम-ओ-रहमान की हिफ़ाज़त में,
आदमी! बदहवास है, क्या है?

सुधर तो सकती है दुनियाँ, लेकिन
हाल, माज़ी का दास है, क्या है?

(माज़ी = अतीत्, भूतकाल)

मिटा रहा है ज़माना इसे जाने कब से,
इक बला है कि प्यास है, क्या है?

गौर करता हूँ तो आती है हँसी,
ये जो सब आस पास है क्या है?

-अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Sunday, December 30, 2018

यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है

यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है

मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो
क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है

माने न माने कोई हक़ीक़त तो है यही
चर्ख़ा है जिस के पास उसी की कपास है

इतना भी बन-सँवर के न निकला करे कोई
लगता है हर लिबास में वो बे-लिबास है

छोटा बड़ा है पानी ख़ुद अपने हिसाब से
उतनी ही हर नदी है यहाँ जितनी प्यास है

-निदा फ़ाज़ली

Thursday, October 13, 2016

मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत
अब खुल के मज़ारों पे ये ऐलान किया जाए
-क़तील शिफ़ाई

(मुफ़लिस = ग़रीब)

Friday, June 5, 2015

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँनिसार चले गए

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँनिसार चले गए
तेरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए

(जाँनिसार = अपने प्राण न्यौछावर करने वाला), (सर-ए-रहगुज़ार = रास्ते में चलने वाले)

तेरी कज़-अदाई से हार के शब-ए-इंतज़ार चली गई
मेरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मेरे ग़मगुसार चले गए

(कज़-अदाई = रूखापन), (शब-ए-इंतज़ार = इंतज़ार की रात), (ज़ब्त-ए-हाल = अपना हाल प्रकट न होने देना), (ग़मगुसार = हमदर्द, दुःख बंटानेवाला)

न सवाल-ए-वस्ल, न अर्ज़-ए-ग़म, न हिकायतें, न शिकायतें
तेरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए

(सवाल-ए-वस्ल = मिलने का प्रश्न), (अर्ज़-ए-ग़म = दुःख का बयान), (हिकायतें = बातें, किस्से, हाल), (अहद = समय, वक़्त, युग), (दिल-ए-ज़ार = दुखी/ बेबस दिल), (इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

ये हमीं थे जिनके लिबास पर सर-ए-राह सियाही लिखी गई
यही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए

(सर-ए-राह = रास्ते में, सबके सामने), (सर-ए-बज़्म-ए-यार = प्रियतम की महफ़िल में)

न रहा जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्या
जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गए

(जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा = प्यार करने का पागलपन/ उन्माद), (रसन = रस्सी), (दार = सूली, फाँसी)


-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

https://www.youtube.com/watch?v=nrGaeg_PXsI


Wednesday, May 29, 2013

दुश्वार काम था तेरे ग़म को समेटना
मैं ख़ुद को बाँधने में कई बार खुल गया

मिट्टी में क्यों मिलाते हो मेहनत रफ़ूगरों
अब तो लिबासे जिस्म का हर तार खुल गया
-मुनव्वर राना

Saturday, May 4, 2013

छुप के आई हज़ार परदों में,
आरज़ू फिर भी बेलिबास रही।
-जिगर मुरादाबादी

Friday, May 3, 2013

मुखौटा ले के इस के पूरे दाम लौटा दो,
मेरा लिबास मुझ को मेरा नाम लौटा दो।

सुलगते नूर के तूफ़ान जान-लेवा हैं,
हमें वो धीमे चराग़ों की शाम लौटा दो।

सुना है आप के हाथों में इक करिश्मा है,
जो हो सके तो सुकूने-अवाम लौटा दो।

हर एक शख्स  के हाथों में दे के आईना,
हर एक शख्स को उसका मक़ाम लौटा दो।

उठा के शहर में  ले जाओ अपनी सौग़ातें,
हमारे गाँव का सादा निज़ाम लौटा दो।

हमें भी अपने वुजूदों से काम लेना है,
हमारे खून के  लबरेज़ जाम लौटा दो।

वक़ार कुछ नहीं काग़ज़ पे बिखरे लफ़्ज़ों का,
हमारे हाथ के लिक्खे पयाम लौटा दो।

[(वक़ार = भारी भरकमपन, प्रतिष्ठा, गंभीरता), (पयाम = समाचार, संदेश)]

-कँवल ज़ियाई

Tuesday, September 25, 2012

बिना लिबास आये थे हम इस जहान में,
बस इक कफ़न की खातिर इतना सफ़र करना पड़ा।
-शायर: नामालूम