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Sunday, October 28, 2012

यहाँ ख़ामोश नज़रों की गवाही कौन पढ़ता है
मेरी आँखों में तेरी बेग़ुनाही कौन पढ़ता है

नुमाइश में लगी चीज़ों को मैला कर रहे हैं सब
लिखी तख्तों पे "छूने की मनाही" कौन पढ़ता है

जहाँ दिन के उजालों का खुला व्यापार चलता हो
वहाँ बेचैन रातों की सियाही कौन पढ़ता है

ये वो महफ़िल है, जिसमें शोर करने की रवायत है
दबे लब पर हमारी वाह-वाही कौन पढ़ता है

वो बाहर देखते हैं, और हमें मुफ़लिस समझते हैं
खुदी जज़्बों पे अपनी बादशाही कौन पढ़ता है

जो ख़ुशक़िस्मत हैं, बादल-बिजलियों पर शेर कहते हैं
लुटे आंगन में मौसम की तबाही, कौन पढ़ता है

-आशुतोष द्विवेदी