Showing posts with label -शायर: अहमद नदीम क़ासमी. Show all posts
Showing posts with label -शायर: अहमद नदीम क़ासमी. Show all posts

Sunday, August 11, 2019

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम
चिराग़ अगर न मिला, अपना दिल जलायेंगे हम

(मोजज़ा =चमत्कार)

हमारी कोहकनी के हैं मुख़्तलिफ़ मेयार
पहाड़ काट के रस्ते नए बनायेंगे हम

(कोहकनी = पहाड़ खोदना, बहुत अधिक परिश्रम का काम), (मुख़्तलिफ़ = अनेक प्रकार का, भिन्न, पृथक, जुदा, कई तरह का)  (मेयार = पैमाना, मापदंड)

जो दिल दुखा है तो ये अज़्म भी मिला है हमें
तमाम उम्र किसी का न दिल दुखायेंगे हम

(अज़्म = संकल्प, दृढ निश्चय, श्रेष्ठता)

बहुत निढाल हैं सुस्ता तो लेंगे पल दो पल
उलझ गया कहीं दामन तो क्या छुड़ायेंगे हम

अगर है मौत में कुछ लुत्फ़ बस तो इतना है
कि इसके बाद ख़ुदा का सुराग़ पायेंगे हम

हमें तो कब्र भी तन्हा न कर सकेगी 'नदीम'
के हर तरफ से ज़मीन को क़रीब पायेंगे हम

-अहमद नदीम कासमी

Thursday, May 16, 2019

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम
बेदार हो गए किसी ख़्वाब-ए-गिराँ से हम

(बेदार = जागृत, जागना), (ख़्वाब-ए-गिराँ =  बड़ा सपना)

ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तिरी निकहतों की ख़ैर
दामन झटक के निकले तिरे गुल्सिताँ से हम

(ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ = नयी बहार के नाज़-नख़रे ), (निकहतों = ख़ुशबुओं)

पिंदार-ए-आशिक़ी की अमानत है आह-ए-सर्द
ये तीर आज छोड़ रहे हैं कमाँ से हम

(पिंदार-ए-आशिक़ी = प्रेम का अभिमान या समझ)

आओ ग़ुबार-ए-राह में ढूँढें शमीम-ए-नाज़
आओ ख़बर बहार की पूछें ख़िज़ाँ से हम

(ग़ुबार-ए-राह = रास्ते की धूल का तूफ़ान), (शमीम-ए-नाज़ = प्यार की खुशबू), (ख़िज़ाँ = पतझड़)

आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ' के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम

-अहमद नदीम क़ासमी

Thursday, April 13, 2017

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा

तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा
घर में घिर जाऊँगा सहरा में बिखर जाऊँगा

(सहरा = रेगिस्तान, जंगल, बयाबान, वीराना, विस्तार)

तेरे पहलू से जो उठ्ठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख़्स को पाऊँगा जिधर जाऊँगा

अब तिरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह
साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा

(साया-ए-अब्र = बादल की परछाई)

तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना
वर्ना सोचा था कि जब चाहूँगा मर जाऊँगा

चारासाज़ों से अलग है मिरा मेआर कि मैं
ज़ख़्म खाऊँगा तो कुछ और सँवर जाऊँगा

(चारासाज़ों = चिकित्सकों), (मेआर = मानदंड)

अब तो ख़ुर्शीद को गुज़रे हुए सदियाँ गुज़रीं
अब उसे ढूँढने मैं ता-ब-सहर जाऊँगा

(ख़ुर्शीद = सूरज), (ता-ब-सहर = सुबह तक)

ज़िंदगी शम्अ' की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
बुझ तो जाऊँगा मगर सुब्ह तो कर जाऊँगा

-अहमद नदीम क़ासमी

Thursday, May 14, 2015

तुझे खोकर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ

तुझे खोकर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
हुस्न-ए-यज़्दां से तुझे हुस्न-ए-बुतां तक देखूं

(हुस्न-ए-यज़्दां = भगवान की सुन्दरता), (हुस्न-ए-बुतां = बुत/मूर्ति की सुन्दरता)

तूने यूँ देखा है जैसे कभी देखा ही न था
मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ

सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें
मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ

वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये तेरे खद्द-ओ-खाल
यूँ तो मैं टूटते तारों का धुआं तक देखूँ

(खद्द-ओ-खाल = यादें / सूरत)

दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ

(फ़क़त = सिर्फ़)

एक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद
हुस्न-ए-इन्सां से निपट लूं तो वहाँ तक देखूँ

(फ़िरदौस = स्वर्ग)

-अहमद नदीम क़ासमी

 

 

Sunday, May 18, 2014

किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ

किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ

वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ

दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ

ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ

-अहमद नदीम क़ासमी


Thursday, January 24, 2013

'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे
अहमद नदीम क़ासमी

Friday, November 16, 2012

आपसे झुक के जो मिलता होगा,
उसका क़द आपसे ऊँचा होगा
-अहमद नदीम क़ासमी