Showing posts with label -शायर: एहसान दानिश. Show all posts
Showing posts with label -शायर: एहसान दानिश. Show all posts

Friday, December 16, 2016

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे

(मौज-ए-सबा = पुरवाई का झोंका)

लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे

इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूँ न मिल हम से ख़ुदा हो जैसे

(शिर्क = किसी और को ईश्वर/ ख़ुदा के समान मानना)

मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे

ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे

हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे

ज़िंदगी बीत रही है 'दानिश'
एक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे

-एहसान दानिश



Tuesday, March 26, 2013

कफ़स की तामीर में मुआविन तेरी नशेमन-पसन्दियाँ हैं,
वगर्ना परवाज़ के लिए बुलन्दियाँ ही बुलन्दियाँ हैं ।
-एहसान दानिश

[(कफ़स = पिंजड़ा), (तामीर = निर्माण/ भवन निर्माण), (मुआविन = सहायक), (नशेमन-पसन्दियाँ = घर बनाने की इच्छा/ प्रयास), (परवाज़ = उड़ान)]

Tuesday, October 23, 2012

तेरी बेझिझक हँसी से न किसी का दिल हो मैला,
ये है शहर आइनों का, यहाँ सांस ले संभल के
-एहसान दानिश