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Monday, March 18, 2013

पामाल होते-होते भी ख़ुशबू लुटा गए,
सीखा नहीं बशर ने गुलों का चलन अभी।
-असर लखनवी

[(पामाल = नष्ट, कुचला हुआ), (बशर = इंसान), (गुल = फूल)]


Paamaal hote-hote bhi khushboo luta gaye,
Seekha nahi Bashar ne gulon ka chalan abhi.
-Asar Lakhnavi
 

Tuesday, February 5, 2013

तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई ज़रुरत ही नहीं बनने सँवरने की ।
-असर लखनवी

(आराइश  = श्रृंगार)

Saturday, November 24, 2012

सीख ले फूलों से ग़ाफ़िल मुद्दआ-ए-जिंदगी,
खुद महकना ही नहीं गुलशन को महकाना भी है
-असर लखनवी

(ग़ाफ़िल = बेख़बर), (मुद्दआ-ए-जिंदगी = ज़िन्दगी का उद्देश्य), (गुलशन = बाग़, बगीचा)

Wednesday, November 21, 2012

जो दर्द से वाकिफ हैं वह खूब समझते है,
राहत में तुझे खोया, तकलीफ में पाया है।
-असर लखनवी

Friday, October 12, 2012

खूबिए-नाज तो देखो कि उसी ने न सुना,
जिसने अफ़साना बनाया मेरे आफ़साने को।
-असर लखनवी

किससे कहिए और क्या कहिए, सुनने वाला कोई नहीं,
कुछ घुट-घुट कर देख लिया, अब शोर मचाकर देखेंगे।
-असर लखनवी