एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
जग ने मेरे सुख-पन्छी के पाँखों में पत्थर बांधे हैं
मेरी विपदाओं ने अपने पैरों मे पायल साधे हैं
एक वेदना मुझसे बोली मैंने अपनी आँख न खोली
उत्तर दिया, चली मत आना मैंने वो उर बदल दिया है
(उर = ह्रदय, दिल)
एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
वैरागिन बन जाएँ वासना, बना सकेगी नहीं वियोगी
साँसों से आगे जीने की हठ कर बैठा मन का योगी
एक पाप ने मुझे पुकारा मैंने केवल यही उचारा
जो झुक जाए तुम्हारे आगे मैंने वो सर बदल दिया है
एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
मन की पावनता पर बैठी, है कमजोरी आँख लगाए
देखें दर्पण के पानी से, कैसे कोई प्यास बुझाए
खंडित प्रतिमा बोली आओ, मेरे साथ आज कुछ गाओ
उत्तर दिया, मौन हो जाओ, मैंने वो स्वर बदल दिया है
एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
-शिशुपाल सिंह 'निर्धन'
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
जग ने मेरे सुख-पन्छी के पाँखों में पत्थर बांधे हैं
मेरी विपदाओं ने अपने पैरों मे पायल साधे हैं
एक वेदना मुझसे बोली मैंने अपनी आँख न खोली
उत्तर दिया, चली मत आना मैंने वो उर बदल दिया है
(उर = ह्रदय, दिल)
एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
वैरागिन बन जाएँ वासना, बना सकेगी नहीं वियोगी
साँसों से आगे जीने की हठ कर बैठा मन का योगी
एक पाप ने मुझे पुकारा मैंने केवल यही उचारा
जो झुक जाए तुम्हारे आगे मैंने वो सर बदल दिया है
एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
मन की पावनता पर बैठी, है कमजोरी आँख लगाए
देखें दर्पण के पानी से, कैसे कोई प्यास बुझाए
खंडित प्रतिमा बोली आओ, मेरे साथ आज कुछ गाओ
उत्तर दिया, मौन हो जाओ, मैंने वो स्वर बदल दिया है
एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है
-शिशुपाल सिंह 'निर्धन'