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Wednesday, February 27, 2019

तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर
-अमीर मीनाई

Monday, February 4, 2019

जाँ से जाने की बात करते हो

जाँ से जाने की बात करते हो
क्यूँ सताने की बात करते हो

लब पे नग़मे हैं मोती पलकों पर
आब-ओ-दाने की बात करते हो

याँ हक़ीक़त पे बे-यक़ीनी है
तुम फ़साने की बात करते हो

दश्नः दाबे बग़ल में आये हो
दोस्ताने की बात करते हो

(दश्नः = ख़ंजर)

आ गया मुंह तलक जिगर अब क्यूँ
आज़माने की बात करते हो

दुनिया क़दमों में मेरे बिछती है
तुम मिटाने की बात करते हो

-स्मृति रॉय

Sunday, May 17, 2015

ख़ामोश मैं और मेरे अफ़साने मुझे तकते हैं
स्याह में अभी ख़ून-ए-जिगर मिलना बाकी है

एक तेज़ धुएं का असर दिखता है
अंगारों का जलना तो अभी बाकी है

-रूपा भाटी

Monday, March 3, 2014

हमने उनके सामने पहले तो खंजर रख दिया
फिर कलेजा रख दिया, दिल रख दिया, सर रख दिया

क़तरा-ए-खून-ए-जिगर सी, की तवज्जोह इश्क़ की
सामने मेहमान के जो था मयस्सर रख दिया

[(तवज्जोह = गौर करना, ध्यान देना), (मयस्सर = प्राप्त, उपलब्ध)]

ज़िन्दगी में तो कभी दम भर न होते थे जुदा
कब्र में तन्हा मुझे यारों क्यूँकर रख दिया

देखिये अब ठोकरें खाती है किस किस की नागाह
रोज़ान-ए-दीवार में ज़ालिम ने पत्थर रख दिया

[(नागाह = सहसा, अचानक, एकाएक), (रोज़ान-ए-दीवार = दीवार का छेद)]

ज़ुल्फ़ खाली, हाथ खाली, किस जगह ढूँढें इसे
तुम ने दिल लेकर कहाँ, ऐ बंदापरवर, रख दिया ?

कहते हैं बू-ए-वफ़ा आती है इन फूलों से आज
दिल जो हमने लाला-ओ-गुल में मिलाकर रख दिया

(लाला-ओ-गुल = ट्यूलिप और गुलाब)

-दाग़ देहलवी






Wednesday, October 23, 2013

जो निगाह की थी ज़ालिम ! तो फिर आँख क्यों चुराई ?
वही तीर क्यों न मारा जो जिगर के पार होता
-अमीर मीनाई


कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
-मिर्ज़ा ग़ालिब


Tuesday, August 20, 2013

होता न सुर्ख़ कैसे, फूलों का रंग सारा
मिट्टी में मिल रहा था, ख़ून-ए-जिगर हमारा
-बाबर इमाम