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Sunday, March 24, 2013

जिस ग़म से दिल को राहत हो, उस ग़म का मुदावा क्या मानी?
जब फ़ितरत तूफ़ानी ठहरी, साहिल की तमन्ना क्या मानी?

[(मुदावा = इलाज), (फ़ितरत = प्रकृति, स्वाभाव), (साहिल = किनारा)]

इशरत में रंज की आमेज़िश, राहत में अलम की आलाइश
जब दुनिया ऐसी दुनिया है, फिर दुनिया, दुनिया क्या मानी?

[(इशरत = आनंद-मंगल, सुख-भोग), (रंज = मनमुटाव, शत्रुता), (आमेज़िश = मिलावट), (अलम = दुःख), (आलाइश = पाप, गुनाह)]

ख़ुद शेखो-बरहमन मुजरिम हैं इक जाम से दोनों पी न सके
साक़ी की बुख़्ल-पसन्दी पर साक़ी का शिकवा क्या मानी?

(बुख़्ल = कंजूसी)

इख़लासो-वफ़ा के सजदों की जिस दर पर दाद नहीं मिलती
ऐ ग़ैरते-दिल ऐ इज़्मे-ख़ुदी उस दर पर सजदा क्या मानी?

(इख़लास = निश्छलता, निष्कपटता, नेकचलनी), (इज़्मे-ख़ुदी = स्वाभिमानी)

ऐ साहबे-नक़्दो-नज़र माना इन्साँ का निज़ाम नहीं अच्छा
उसकी इसलाह के पर्दे में अल्लाह मे झगड़ा क्या मानी?

(इसलाह = शुद्धि, संशोधन)

मयख़ाने में तो ऐ वाइज़ तलक़ीन के कुछ उसलूब बदल
अल्लाह का बन्दा बनने को जन्नत का सहारा क्या मानी?

(तलक़ीन = उपदेश), (उसलूब = ढंग)

इज़हारेवफ़ा लाज़िम ही सही ऐ 'अर्श' मगर फ़रियादें क्यों?
वो बात जो सब पर ज़ाहिर है उस बात का चर्चा क्या मानी?

-अर्श मलसियानी

Friday, September 28, 2012

तूफ़ान से उलझ गए लेकर ख़ुदा का नाम
आख़िर नजात पा ही गए नाख़ुदा से हम

[(नजात = मुक्ति, छुटकारा), (नाख़ुदा = मल्लाह, नाविक)]

पहला सा वह जुनूने-मुहब्बत नहीं रहा
कुछ-कुछ सम्भल गए हैं तुम्हारी दुआ से हम

खूँ-ए-वफ़ा मिली दिले-दर्द-आशना मिला
क्या रह गया है और जो माँगें ख़ुदा से हम

[(खूँ-ए-वफ़ा = वफ़ा करने का स्वभाव), (दिले-दर्द-आशना = मित्र जैसा दिल का दर्द)]

पाए-तलब भी तेज था मंज़िल भी थी क़रीब
लेकिन नजात पा न सके रहनुमाँ से हम
-अर्श मलसियानी
हम जौर भी सह लेंगे मगर डर है तो यह है
ज़ालिम को कभी फूलते-फलते नहीं देखा

अहबाब की यह शाने-हरीफ़ाना सलामत
दुश्मन को भी यूं ज़हर उगलते नहीं देखा

वोह राह सुझाते हैं, हमें हज़रते-रहबर
जिस राह पे उनको कभी चलते नहीं देखा
-अर्श मलसियानी

1. जौर = अत्याचार, ज़ुल्म
2. अहबाब = दोस्त, मित्र
3. शाने-हरीफ़ाना = चालाकी
4. रहबर = पथ प्रदर्शक