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Wednesday, May 1, 2019

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तिरी याद में दुनिया भर से
कब मिरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तिरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कि कैसे हो 'शकील'
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

-शकील बदायुनी







Tuesday, April 30, 2019

वो हम से दूर होते जा रहे हैं

वो हम से दूर होते जा रहे हैं
बहुत मग़रूर होते जा रहे हैं

बस इक तर्क-ए-मोहब्बत के इरादे
हमें मंज़ूर होते जा रहे हैं

मनाज़िर थे जो फ़िरदौस-ए-तसव्वुर
वो सब मस्तूर होते जा रहे हैं

(मनाज़िर = मंज़र का बहुवचन, दृश्य समूह), (फ़िरदौस-ए-तसव्वुर = ख़यालों की जन्नत), (मस्तूर =लिखित, अभिव्यक्त, छिपा हुआ, गुप्त)

बदलती जा रही है दिल की दुनिया
नए दस्तूर होते जा रहे हैं

बहुत मग़्मूम थे जो दीदा-ओ-दिल
बहुत मसरूर होते जा रहे हैं

(मग़्मूम = ग़म से भरा हुआ, दुखी), (दीदा-ओ-दिल = आँखे और दिल), (मसरूर = प्रसन्न, आनंदित)

वफ़ा पर मुर्दनी सी छा चली है
सितम का नूर होते जा रहे हैं

कभी वो पास आए जा रहे थे
मगर अब दूर होते जा रहे हैं

फ़िराक़ ओ हिज्र के तारीक लम्हे
सरापा नूर होते जा रहे हैं

(फ़िराक़ ओ हिज्र = मिलान और जुदाई), (तारीक = अंधकारमय), (सरापा = सर से पाँव तक)

'शकील' एहसास-ए-गुमनामी से कह दो
कि हम मशहूर होते जा रहे हैं

-शकील बदायुनी

Tuesday, March 28, 2017

शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे

शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे
अपनी दुनिया ख़राब कौन करे

(इज़्तिराब = व्याकुलता, बेचैनी, आतुरता), (शिकवा-ए-इज़्तिराब = बेचैनी की शिकायत)

गिन तो लेते हैं उँगलियों पे गुनाह
रहमतों का हिसाब कौन करे

इश्क़ की तल्ख़-कामियों के निसार
ज़िंदगी कामयाब कौन करे

(तल्ख़-कामियों = खराब अनुभव), (निसार = न्यौछावर करना)

हम से मय-कश जो तौबा कर बैठें
फिर ये कार-ए-सवाब कौन करे

(कार-ए-सवाब = पुण्य का काम)

ग़र्क़-ए-जाम-ए-शराब हो के 'शकील'
शग़्ल-ए-जाम-ओ-शराब कौन करे

(ग़र्क़-ए-जाम-ए-शराब = शराब के प्याले में डूबना), (शग़्ल-ए-जाम-ओ-शराब = प्याले और शराब का शौक़)

-शकील बदायुनी

Thursday, May 28, 2015

मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझमें और तुझमें
मिरी ज़िन्दगी तलातुम तिरी ज़िन्दगी किनारा
-शकील बदायूँनी

(नासेह = नसीहत करने वाला, उपदेशक), (तलातुम = तूफ़ानी लहर)

 

Monday, April 15, 2013

तेरी अंजुमन में ज़ालिम अजब एहतिमाम देखा,
कहीं ज़िन्दगी की बारिश कहीं क़त्ले-आम देखा।
-शकील बदायूँनी

(अंजुमन = सभा, महफ़िल), (एहतिमाम = व्यवस्था, प्रबंध, बंदोबस्त)


Teri anjuman me zaalim ajab ehtimaam dekha,
Kahin zindagi ki baarish kahin katle-aam dekha.
-Shakeel Badayuni

Sunday, April 7, 2013

राहे-ख़ुदा में आलमे-रिन्दाना मिल गया,
मस्जिद को ढूंढते थे कि मैख़ाना मिल गया।
-शकील बदायूँनी

(आलमे-रिन्दाना = मदमस्त वातावरण)

Tuesday, February 12, 2013

किस शौक़, किस तमन्ना, किस दर्जा सादगी से,
हम आपकी शिकायत करते हैं आप ही से ।
-शकील बदायूँनी