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Saturday, January 30, 2021

हाइकू की एक क़िस्म माहिया

बाग़ों में पड़े झूले
तुम भूल गए हम को
हम तुम को नहीं भूले
-चराग़ हसन "हसरत"

पीपल इक आँगन में
ये कौन सुलगता है
तेरे प्यार के सावन में

भरपूर जवानी है
क्यों नींद नहीं आती
ये और कहानी है
-दिलनवाज़ "दिल"

बादल कभी होते हम
गोरी तेरी गलिओं पर
दिल खोलके रोते हम

दरिया से उड़े बगले
अब उसकी मुहब्बत में
वो बात नहीं पगले
-अली मुहम्मद "फ़रशी"

दरियाओं का पानी है
तुझपे फ़िदा कर दूँ
जाँ यूँ भी तो जानी है

खिली रात की रानी है
चले भी आओ सजना
रात बड़ी सुहानी है
-ताहिर

तेरा दर्द छुपा लूँगी
जब याद तू आए गा
मैं माहिया गा लूँगी
-क़तील शिफ़ाई

दिल ले के दग़ा देंगे
यार हैं मतलब के
ये देंगे भी तो क्या देंगे
-साहिर लुधियानवी

इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
-हिम्मत राय शर्मा

Thursday, November 12, 2020

कभी तो दिन हो उजागर कभी तो रात खुले

कभी तो दिन हो उजागर कभी तो रात खुले
ख़ुदाया! हम पे कभी तो ये कायनात खुले

बिछड़ गया तो ये जाना वो साथ था ही नहीं
कि तर्क होके हमारे ताअ'ल्लुक़ात खुले

(तर्क = त्याग)

तू चुप रहे भी तो मैं सुन सकूँ तिरी आवाज़
मैं कुछ कहूँ न कहूँ तुझ पे मेरी बात खुले

सबक़ तो देती चली जा रही थी हर ठोकर
प-खुलते- खुलते ही इस दिल पे तजरबात खुले

किनारे लग भी गई कश्ती-ए-ह़यात, मगर
मैं मुंतज़िर ही रहा मक़सद-ए-ह़यात खुले

(कश्ती-ए-ह़यात = जीवन की नाव), (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (मक़सद-ए-ह़यात = जीवन का अर्थ)

- राजेश रेड्डी

Friday, July 31, 2020

एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं
जिस तरह सीप के सीने गुहर होता है
जिस तरह रात के रानी की महक होती है
जिस तरह साँझ की वंशी का असर होता है

जिस तरह उठता है आकाश में इक इंद्रधनुष
जैसे पीपल के तले कोई दिया जलता है
जैसे मंदिर में कहीं दूर घंटियाँ बजतीं
जिस तरह भोर के पोखर में कमल खिलता है

जिस तरह खुलता हो सन्दूक पुराना कोई
जिस तरह उसमें से ख़त कोई पुराना निकले
जैसे खुल जाय कोई चैट की खिड़की फिर से
ख़ुद-बख़ुद जैसे कोई मुँह से तराना निकले

जैसे खँडहर में बची रह गयी बुनियादें हैं
एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं

-अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Thursday, April 23, 2020

कब महकती है भला रात की रानी दिन में
शहर सोया तो तेरी याद की खुशबु जागी
-परवीन शाकिर 

Saturday, December 7, 2019

पलकों पे बरसात सम्हाले बैठे हैं

पलकों पे बरसात सम्हाले बैठे हैं
हम अपने जज़्बात सम्हाले बैठे हैं।

ख़्वाबों में तेरे आने की ख़्वाहिश में
मुद्दत से इक रात सम्हाले बैठे हैं।

और हमें क्या काम बचा है फ़ुरक़त में
क़ुर्बत के लम्हात सम्हाले बैठे हैं।

(फ़ुरक़त = विरह), (क़ुर्बत = नज़दीकी)

हमको डर है बस तेरी रुसवाई का
इस ख़ातिर हर बात सम्हाले बैठे हैं।

(रुसवाई = बदनामी)

शहरों में ले आया हमको रिज़्क़ मगर
भीतर हम देहात सम्हाले बैठे हैं।

(रिज़्क़ = आजीविका)

बच्चों के उजले मुस्तक़बिल की ख़ातिर
हम मुश्किल हालात सम्हाले बैठे हैं।

(मुस्तक़बिल = भविष्य)

हमने तो बस एक ख़ुशी ही मांगी थी
अब ग़म की इफ़रात सम्हाले बैठे हैं।

(इफ़रात = अधिकता, प्रचुरता)

वादे, धोखे, आंसू,आहें और जफ़ा
तेरी सब सौग़ात सम्हाले बैठे हैं।

(जफ़ा =अत्याचार, अन्याय)

 - विकास वाहिद २/१२/२०१९

Wednesday, July 31, 2019

अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
रात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
-सबा अकबराबादी

Monday, June 24, 2019

चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर
जिस्म है या कोई शमशीर निकल आई है

(शानों = कन्धों), (शमशीर = तलवार)

मुद्दतों बा'द उठाए थे पुराने काग़ज़
साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है

-साबिर दत्त

Thursday, June 20, 2019

उससे जब भी मैंने बात बढ़ा कर देखी

उससे जब भी मैंने बात बढ़ा कर देखी है
अपने दिल की धड़कन हाथ लगा कर देखी है।

उसको मेरा चेहरा हर राज़ बता देता है
मैंने जब भी कोई बात छुपा कर देखी है।

यूं तो वो भी वाक़िफ़ है दिल के सूनेपन से
उसने मेरे दिल में रात बिता कर देखी है।

किस्मत से ज़्यादा ही मेरे हिस्से में आईं
खुशियों की मैंने सौग़ात लुटा कर देखी है।

- विकास वाहिद
१९ जून २०१९

Saturday, May 25, 2019

तन्हाई की बीन बजाता जाएगा

तन्हाई की बीन बजाता जाएगा
जोगी अपनी धुन में गाता जाएगा

रात सियाही कंबल ओढ़े बैठी है
दिन सारे अरमान थकाता जाएगा

(सियाही = काली)

मंदिर-मस्जिद गिरजाघर या गुरुद्वारा
कहाँ कहाँ हमको भटकाता जाएगा

मौत कहाँ आसान डगर है हमअसरों
धीरे-धीरे सब कुछ जाता जाएगा

(हमअसरों = दोस्तों)

ये 'मलंग' अपना अपना सरमाया है
कोई खोता कोई पाता जाएगा

(सरमाया = संपत्ति, धन-दौलत, पूँजी)

- सुधीर बल्लेवार 'मलंग'



Thursday, May 16, 2019

ये कह के हमें छोड़ गई रौशनी इक रात
तुम अपने चराग़ों की हिफ़ाज़त नहीं करते
-साक़ी फ़ारुक़ी

Friday, April 26, 2019

कब हुई फिर सुब्ह कब ये रात निकली

कब हुई फिर सुब्ह कब ये रात निकली
कल तेरी जब बात से फिर बात निकली।

जुर्म तुझको याद करने का किया फिर
करवटें बदलीं कई तब रात निकली।

आज़मा के देख ली दुनिया भी हमने
ना कोई सौग़ात ना ख़ैरात निकली।

रंग निकला है शराफ़त का ही पहले
आदमी की अस्ल फिर औक़ात निकली।

जिस्म भीगा पर न भीगी रूह अब तक
इस बरस भी राएगां बरसात निकली।

(राएगां = व्यर्थ)

- विकास वाहिद
२५/४/१९

Tuesday, March 19, 2019

इन अंधेरों से परे इस शब-ए-ग़म से आगे
इक नई सुब्ह भी है शाम-ए-अलम से आगे
-इशरत क़ादरी

(शब-ए-ग़म = दुःख की रात), (शाम-ए-अलम = दुःख की शाम)

Sunday, March 10, 2019

अंधी बस्ती में इक अजूबा हूँ

अंधी बस्ती में इक अजूबा हूँ
आँख रखता हूँ और गूँगा हूँ

दिन तमाशाई मुझ को क्या जाने
मेरी रातों से पूछ कैसा हूँ

रंग-ए-दुनिया भी इक तमाशा है
अपने हाथों में इक खिलौना हूँ

मेरी मशअ'ल से रात पिघली थी
सुब्ह तिनका सा मैं ही बहता हूँ

क्या ये दुनिया ही चाह-ए-बाबुल है
आदमी हूँ या मैं फ़रिश्ता हूँ

ख़ुद को पाने की क्या सबील करूँ
मैं इन्ही रास्तों में खोया हूँ

(सबील = मार्ग, रास्ता, उपाय, यत्न, तदबीर, पद्धति, शैली)

-मोहम्मद असदुल्लाह

Wednesday, March 6, 2019

इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
-अख़्तर शीरानी

Tuesday, March 5, 2019

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए
कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
-इरफ़ान सिद्दीक़ी

(मंज़र-ए-शब-ताब = रात की चमक का समा/ दृश्य)

Monday, February 4, 2019

रात को जब याद आए तेरी ख़ुशबू-ए-क़बा
तेरे क़िस्से छेड़ते हैं रात की रानी से हम
-अब्बास ताबिश

(ख़ुशबू-ए-क़बा = कपड़ों की ख़ुशबू)

Thursday, January 17, 2019

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
-परवीन शाकिर

Saturday, December 22, 2018

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है

जब से तू ने हल्की हल्की बातें कीं
यार तबीअत भारी भारी रहती है

पाँव कमर तक धँस जाते हैं धरती में
हाथ पसारे जब ख़ुद्दारी रहती है

वो मंज़िल पर अक्सर देर से पहुँचे हैं
जिन लोगों के पास सवारी रहती है

छत से उस की धूप के नेज़े आते हैं
जब आँगन में छाँव हमारी रहती है

(नेज़े = तीर)

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

-राहत इंदौरी

Friday, December 21, 2018

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए

चाँदनी रातों में इक इक फूल को
बे-ख़ुदी कहती है सज्दा कीजिए

जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए

(बर = पर, ऊपर)

इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए

पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए

हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए

आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए

(मुदावा = उपचार, इलाज)

कहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हम को न रुस्वा कीजिए 

(रुस्वा =बदनाम)

-अख़्तर शीरानी

Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली





Monday, January 29, 2018

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी
हम ना होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी

पांव पत्थर करके छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिए तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जाएगी

तुमने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मैं न कहता था के दुनिया दर्द-ए-सर हो जाएगी

तल्खियां भी लाज़िमी हैं ज़िन्दगी के वास्ते
इतना मीठा बनकर मत रहिए शकर हो जाएगी

जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिए
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी

(सहर = सुबह)

- राहत इंदौरी