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Saturday, November 8, 2014

गुंचे तेरे अंजाम पे जी हिलता है
बस एक तबस्सुम के लिए खिलता है
गुंचे ने कहा कि इस जहाँ में बाबा
ये एक तबस्सुम भी किसे मिलता है ?
-जोश मलीहाबादी

(गुंचा = कली), (तबस्सुम = मुस्कराहट)


Monday, May 13, 2013

सोज़े-ग़म देके उसने ये इरशाद किया

सोज़े-ग़म देके उसने ये इरशाद किया
जा तुझे कश्मकश-ए-दहर से आज़ाद किया

(सोज़े-ग़म दुःख की जलन), (इरशाद = आदेश, हुक्म),  (दहर = ज़माना, समय, युग)

वो करें भी तो किन अल्फ़ाज में तिरा शिकवा
जिनको तिरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया

इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया

इतना मासूम हूँ फितरत से, कली जब चटकी
झुक के मैंने कहा, मुझसे कुछ इरशाद किया

(इरशाद = आदेश, हुक्म)

मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद-ए-मौत
मैंने ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया

(शाहिद-ए-मौत = मौत की गवाह)

मुझको तो होश नहीं तुमको खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया

वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को न भुलाया न कभी याद किया

कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हरीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया, हिज्र ने नाशाद किया

(वस्ल = मिलन), (हरीफ़ = प्रतिद्वंदी), (शाद = खुश), (हिज्र = जुदाई), (नाशाद =  नाखुश)

-जोश मलीहाबादी

                                                       Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली 



Sunday, April 14, 2013

हर सांस में जाम-ए-ज़हर पीता क्यों है
हर चाक को बार-बार सीता क्यों है

(जाम-ए-ज़हर = ज़हर का प्याला), (चाक = कटा फटा हुआ)

जितने भी जतन हैं, सब हैं, जीने के लिए
पर यह भी कभी सोचा कि जीता क्यों है
-जोश मलीहाबादी

Thursday, April 4, 2013

फ़ुगाँ कि मुझ ग़रीब को हयात का ये हुक्म है,
समझ हरेक राज़ को मगर फ़रेब खाए जा ।
- जोश मलीहाबादी

[(फ़ुगाँ = दुहाई), (हयात = जीवन)]






 

Friday, November 30, 2012

जंगलों में सर पटकता जो मुसाफ़िर मर गया,
अब उसे आवाज़ देता कारवां आया तो क्या?
-जोश मलीहाबादी

Tuesday, November 13, 2012

जिसमें बचपन का मेरे क़िस्सा है,
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है ।
-जोश मलीहाबादी

Tuesday, October 2, 2012

जिसको तुम भूल गये याद करे कौन उसे,
जिसको तुम याद हो वो और किसे याद करे
-जोश