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Tuesday, August 6, 2019

अब भी इक लब में और तबस्सुम में
हद्द-ए-फ़ासिल है एक दूरी है
कितनी सदियाँ गुज़र चुकीं लेकिन
ज़िंदगी आज भी अधूरी है
-वसीम बरेलवी

(तबस्सुम = मुस्कराहट), (हद्द-ए-फ़ासिल = सीमा जो अलग करे)

Wednesday, April 10, 2019

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है

ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो
कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है

ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र
कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है

बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं
उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है

(उरूज = बुलंदी, ऊँचाई), (ज़वाल = हृास, पतन)

जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती
वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है

-वसीम बरेलवी

Tuesday, April 9, 2019

तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे

तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे
हम तो वो हैं तिरे चेहरे से दिखाई देंगे

हम को महसूस किया जाए है ख़ुश्बू की तरह
हम कोई शोर नहीं हैं जो सुनाई देंगे

फ़ैसला लिक्खा हुआ रक्खा है पहले से ख़िलाफ़
आप क्या साहब अदालत में सफ़ाई देंगे

पिछली सफ़ में ही सही, हैं तो इसी महफ़िल में
आप देखेंगे तो हम क्यूँ न दिखाई देंगे

(सफ़ = पंक्ति)

-वसीम बरेलवी

Monday, October 10, 2016

अक्सर इस तरह आस का दामन
दिल के हाथों से छूट जाता है
जैसे होंटों तक आते आते जाम
दफ़्अतन गिर के टूट जाता है
-वसीम बरेलवी

(दफ़्अतन = सहसा, अचानक, अकस्मात्)

Saturday, January 9, 2016

अपनी तन्हाई भी कुछ कम ना थी मसरूफ़ 'वसीम'
इस.लिए छोड़ दिया अंजुमन आराई को
-वसीम बरेलवी

(अंजुमन आराई  = महफ़िल सजाना)

Saturday, December 7, 2013

किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
तो ये रिश्ते निभाना किस क़दर आसान हो जाये
-वसीम बरेलवी
दूरी हुई, तो उनसे करीब और हम हुए
ये कैसे फ़ासिले थे, जो बढ़ने से कम हुए
-वसीम बरेलवी
घर में एक शाम भी जीने का बहाना न मिले
सीरियल ख़त्म न हो जाए तो खाना न मिले
-वसीम बरेलवी
कभी लफ़्ज़ों से गद्दारी न करना
ग़ज़ल पढ़ना, अदाकारी न करना

मेरे बच्चों के आंसू पोंछ देना
लिफ़ाफ़े का टिकट जारी न करना
-वसीम बरेलवी
किसी मजलूम की आँखों से देखा
तो ये दुनिया नज़र आई बहुत है

तुझी को आँख भर कर देख पाऊं
मुझे बस इतनी बिनाई बहुत

नहीं चलने लगी यूँ मेरे पीछे
ये दुनिया मैंने ठुकराई बहुत है
-वसीम बरेलवी
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Friday, May 3, 2013

तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते,
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते।
-वसीम बरेलवी

Thursday, February 14, 2013

चलो हम ही पहल कर दें कि हमसे बदगुमां क्यों हो,
कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर रायगाँ क्यों हो।

(रायगाँ = व्यर्थ, बरबाद)

हमारी गुफ़्तगू की और भी सम्तें बहुत सी हैं,
किसी का दिल दुखाने ही को फिर अपनी ज़बां क्यों हो।

[(गुफ़्तगू = चर्चा, बातचीत, वार्तालाप), (सम्तें = दिशाएं)]

-वसीम बरेलवी
 

Wednesday, February 13, 2013

ये ज़िन्दगी का सफ़र भी अजीब ही निकला,
सफ़र में सब हैं, मुसाफ़िर कोई नहीं लगता ।
-वसीम बरेलवी

Tuesday, February 12, 2013

ये ज़िन्दगी का मुसाफ़िर, ये बेवफ़ा लम्हा,
चला गया, तो कभी लौटकर न आएगा ।

'वसीम' अपने अंधेरों का ख़ुद इलाज करो,
कोई चराग़ जलाने इधर न आयेगा ।
-वसीम बरेलवी
हद से बढ़ के तअल्लुक़ निभाया नहीं,
मैंने इतना भी खुद तो गंवाया नहीं ।

उम्र सारी तमाशों में गुज़री मगर,
मैंने ख़ुद को तमाशा बनाया नहीं ।
-वसीम बरेलवी

 
मुहब्बत के यह आंसू हैं, इन्हें आँखों में रहने दो,
शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता ।
-वसीम बरेलवी

Saturday, February 9, 2013

दुनिया की तलब है, तो क़नाअत ही न करना,
क़तरे ही से ख़ुश हो, तो समंदर न मिलेगा ।

(क़नाअत = सन्तोष)

-वसीम बरेलवी
 
दुख अपना अगर हमको बताना नहीं आता,
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता ।

पहुंचा है बुजुर्गों के बयानों से जो हम तक,
क्या बात हुई, क्यों वो ज़माना नहीं आता ।

मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया,
उसको भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता ।

इस छोटे से ज़माने के बड़े कैसे बनोगे,
लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता ।

ढूंढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने,
आंसू को मेरी आँख में आना नहीं आता ।

तारीख़ की आँखों में धुआं हो गए ख़ुद ही,
तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता ।
-वसीम बरेलवी

बिछड़ के मुझसे तुम अपनी कशिश न खो देना,
उदास रहने से चेहरा ख़राब होता है ।
-वसीम बरेलवी

Friday, February 8, 2013

भला ग़मों से कहां हार जाने वाले थे,
हम आंसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे।

हमीं ने कर दिया ऐलान-ए-गुमराही वर्ना,
हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे।

(ऐलान-ए-गुमराही = पथ-भ्रष्ट होने की घोषणा)

हमारा अलमिया यह था कि हमसफ़र भी हमें,
वही मिले, जो बहुत याद आने वाले थे।

(अलमिया = विडम्बना)

'वसीम' कैसी तअल्लुक की राह थी, जिसमे
वही मिले, जो बहुत दिल दुखाने वाले थे।

(तअल्लुक = सम्बंध)

-वसीम बरेलवी