अब भी इक लब में और तबस्सुम में
हद्द-ए-फ़ासिल है एक दूरी है
कितनी सदियाँ गुज़र चुकीं लेकिन
ज़िंदगी आज भी अधूरी है
-वसीम बरेलवी
(तबस्सुम = मुस्कराहट), (हद्द-ए-फ़ासिल = सीमा जो अलग करे)
हद्द-ए-फ़ासिल है एक दूरी है
कितनी सदियाँ गुज़र चुकीं लेकिन
ज़िंदगी आज भी अधूरी है
-वसीम बरेलवी
(तबस्सुम = मुस्कराहट), (हद्द-ए-फ़ासिल = सीमा जो अलग करे)