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Thursday, November 24, 2016

हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर

हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर
दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर

और तो कौन है जो मुझ को तसल्ली देता
हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर

हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद
ग़म-ज़दा लगती हैं क्यूँ चाँदनी रातें अक्सर

(शाइस्ता =  सभ्य, शिष्ट), (अलम = दुःख)

हाल कहना है किसी से तो मुख़ातिब है कोई
कितनी दिलचस्प हुआ करती हैं बातें अक्सर

(मुख़ातिब = वह जो किसी से कुछ कहता हो,वक्ता)

इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी
हम ने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर

(रहज़न = डाकू, लुटेरा)

हम से इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर

उन से पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुम ने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर

हम ने उन तुंद-हवाओं में जलाए हैं चराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर

(तुंद = तेज़, भीषण)

-जाँ निसार अख़्तर



Friday, June 14, 2013

सपने अनेक थे तो मिले स्वप्न-फल अनेक,
राजा अनेक, वैसे ही उनके महल अनेक।

यूँ तो समय-समुद्र में पल यानी एक बूंद,
दिन, माह, साल रचते रहे मिलके पल अनेक।

जो लोग थे जटिल, वो गए हैं जटिल के पास
मिल ही गए सरल को हमेशा सरल अनेक।

झगडे हैं नायिका को रिझाने की होड़ के,
नायक के आसपास ही रहते हैं खल अनेक।

बिखरे तो मिल न पाएगी सत्ता की सुन्दरी,
संयुक्त रहके करते रहे राज दल अनेक।

लगता था-इससे आगे कोई रास्ता नहीं,
कोशिश के बाद निकले अनायास हल अनेक।

लाखों में कोई एक ही चमका है सूर्य-सा
कहने को कहने वाले मिलेंगे ग़ज़ल अनेक।

-जहीर कुरैशी