अंधी बस्ती में इक अजूबा हूँ
आँख रखता हूँ और गूँगा हूँ
दिन तमाशाई मुझ को क्या जाने
मेरी रातों से पूछ कैसा हूँ
रंग-ए-दुनिया भी इक तमाशा है
अपने हाथों में इक खिलौना हूँ
मेरी मशअ'ल से रात पिघली थी
सुब्ह तिनका सा मैं ही बहता हूँ
क्या ये दुनिया ही चाह-ए-बाबुल है
आदमी हूँ या मैं फ़रिश्ता हूँ
ख़ुद को पाने की क्या सबील करूँ
मैं इन्ही रास्तों में खोया हूँ
(सबील = मार्ग, रास्ता, उपाय, यत्न, तदबीर, पद्धति, शैली)
-मोहम्मद असदुल्लाह
आँख रखता हूँ और गूँगा हूँ
दिन तमाशाई मुझ को क्या जाने
मेरी रातों से पूछ कैसा हूँ
रंग-ए-दुनिया भी इक तमाशा है
अपने हाथों में इक खिलौना हूँ
मेरी मशअ'ल से रात पिघली थी
सुब्ह तिनका सा मैं ही बहता हूँ
क्या ये दुनिया ही चाह-ए-बाबुल है
आदमी हूँ या मैं फ़रिश्ता हूँ
ख़ुद को पाने की क्या सबील करूँ
मैं इन्ही रास्तों में खोया हूँ
(सबील = मार्ग, रास्ता, उपाय, यत्न, तदबीर, पद्धति, शैली)
-मोहम्मद असदुल्लाह