Showing posts with label सादगी. Show all posts
Showing posts with label सादगी. Show all posts

Saturday, October 22, 2016

सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं
हम मगर सादगी के मारे हैं
-जिगर मुरादाबादी

Thursday, May 28, 2015

मुझे ज़िन्दगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तेरी सादगी पर
-गोपाल मित्तल
 

Tuesday, February 12, 2013

किस शौक़, किस तमन्ना, किस दर्जा सादगी से,
हम आपकी शिकायत करते हैं आप ही से ।
-शकील बदायूँनी


Tuesday, February 5, 2013

तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई ज़रुरत ही नहीं बनने सँवरने की ।
-असर लखनवी

(आराइश  = श्रृंगार)

Friday, October 12, 2012

आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है के फूलों का
रंग तेरी हँसी से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कार-ओ-बार-ए-जहाँ सँवरते हैं
होश जब बेख़ुदी से मिलता है

-जिगर मुरादाबादी

Thursday, September 27, 2012

कुटिलता में नहीं कोई कमी भी
वो रखते हैं गजब की सादगी भी

व्यथा की पंखुरी से छिल गया हूँ
डराती है मुझे अब सादगी भी

कहीं मंदिर कहीं मस्जिद की बातें
यहाँ छल की भी भाषा मजहबी भी

अंधेरों में कहीं कुछ हौसला- सा
अगर होता तो होती जिंदगी भी

दिल ही बैठता है बेबसी में
लगाती है गरीबी पालथी भी

निराशाओं में है उम्मीद कायम
बुरे दिन की है अपनी रौशनी भी

हमारी यातना का कद बढ़ा तो
दुखों में मिल गयी थोड़ी खुशी भी
-
डॉ० विनय मिश्र