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Saturday, December 20, 2014

तेरा हर ख़याल है सरसरी, तेरा हर कमाल है ज़ाहिरी
कोई दिल की बात करूँ तो क्या, तेरे दिल में आग तो है नहीं
-नासिर काज़मी

(ख़याल = विचार), (सरसरी = ध्यान या समझ के बिना), (ज़ाहिरी = दिखावा)

Tuesday, July 29, 2014

दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी

भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी

तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या
हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी

याद के बे-निशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी

शहर की बेचिराग़ गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी

सो गये लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जागती है अभी

वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी

-नासिर काज़मी



Wednesday, October 31, 2012

दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया

आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया

तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा
मर रहेंगे अगर अब याद आया

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया

हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़सत हुए तब याद आया

बैठ कर साया-ए-गुल में “नासिर”
हम बहुत रोये वो जब याद आया
-नासिर काज़मी