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Thursday, April 23, 2020

कब महकती है भला रात की रानी दिन में
शहर सोया तो तेरी याद की खुशबु जागी
-परवीन शाकिर 

Monday, August 19, 2019

दाने तक जब पहुँची चिड़िया
जाल में थी
ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश ने मार दिया
-परवीन शाकिर

Thursday, January 17, 2019

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
-परवीन शाकिर

Monday, November 24, 2014

जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
-परवीन शाकिर

(अहद = समय, वक़्त, युग)

Saturday, February 16, 2013

वह समुन्दर है तो फिर रूह को शादाब करे,
तश्नगी क्यों मुझे देता है सराबों की तरह ।
-परवीन शाकिर

[(शादाब = प्रफुल्लित), (तश्नगी = प्यास), (सराब = मृगतृष्णा)]

Tuesday, October 23, 2012

दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खेंचता है मुझ पे पहला तीर कौन
-परवीन शाकिर

Tuesday, October 2, 2012

मसला जब भी उठा चिराग़ों का
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है
- परवीन शाकिर
कहूँ कुछ उससे मगर ख़याल होता है
शिकायतों का नतीजा अक्सर मलाल होता है
-परवीन शाकिर