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Monday, June 22, 2020

ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
-बशीर बद्र

Friday, February 1, 2019

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिये उस की आँखों के जलते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी
किराये के घर थे बदलते रहे

सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे

लिपट के चराग़ों से वो सो गये
जो फूलों पे करवट बदलते रहे

-बशीर बद्र


Friday, August 29, 2014

ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज्यादा सफ़ाई न दे

(ख़तावार = अपराधी, दोषी)

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियोँ की सुनाई न दे

(सदा = आवाज़)

अभी तो बदन में लहू है बहुत
क़लम छीन ले, रोशनाई न दे

(रोशनाई = स्याही)

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीँ आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरोँ को ऐसी रिहाई न दे

(बरकत = लाभ, फायदा, कृपा), (असीर = बंदी, क़ैदी)

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
जहाँ से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

(इरफ़ान = बुद्धि, विवेक, ज्ञान)

-बशीर बद्र


Tuesday, May 28, 2013

हमराह चलो मेरे या राह से हट जाओ,
दीवार के रोके से दरिया कहीं रुकता है।
-बशीर बद्र
मंज़िल पे हयात आ के ज़रा थक-सी गयी है,
मालूम ये होता है बहुत तेज़ चली है ।
-बशीर बद्र

(हयात = जीवन)

Monday, May 27, 2013

औराक़ में छुपाती थी अक्सर वो तितलियाँ,
शायद किसी किताब में रक्खा हुआ हूँ मैं ।
- बशीर बद्र

(औराक़ = किताब के पन्ने)
न जी भर के देखा न कुछ बात की,
बड़ी आरज़ू थी, मुलाक़ात की ।

उजालों की परियाँ नहाने लगीं,
नदी गुनगुनाई, ख़यालात की ।

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई,
ज़ुबाँ सब समझते हैं, जज़्बात की ।

मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुरआब का,
बरसती हुई रात, बरसात की।

(चश्म-ए-पुरआब = आँसू भरी आँखें)

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की ।

- बशीर बद्र


वक़्त सौ मुंसिफ़ों का मुंसिफ़ है,
वक़्त आएगा इंतज़ार करो ।
- बशीर बद्र

(मुंसिफ़ = न्यायाधीश)
रात आंखों में ढली, पलकों पे जुगनू आए,
हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए

बस गई है मेरे एहसास में ये कैसी महक,
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊं तेरी ख़ुशबू आए

उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया,
मुद्दतों बाद मेरी आंख में आंसू आए

मैंने दिन-रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी,
कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए

मेरा आईऩा भी अब मेरी तरह पागल है,
आईना देखने जाऊं तो नज़र तू आए

-बशीर बद्र

Wednesday, May 8, 2013

फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले,
तितलियाँ खुद रुकेंगी सदाएँ न दे ।
-बशीर बद्र

(सदा = आवाज़) 

Monday, May 6, 2013

घर कितने भी छोटे हों घने पेड़ मिलेंगे,
शहर से अलग होती है कस्बात की खुशबू।
-बशीर बद्र

Friday, May 3, 2013

हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इन्तिज़ार है,
सब खिड़कियों के सामने लम्बी कतार है।
-बशीर बद्र
कोई चिराग़ नहीं है मगर उजाला है,
ग़ज़ल की शाख पे इक फूल खिलने वाला है।
-बशीर बद्र

Saturday, March 9, 2013

ज़िन्दगी एक फ़क़ीर की चादर,
जब ढके पाँव हमने, सर निकला
-बशीर बद्र

Zindagi ek fakeer kee chaadar,
Jab dhake paanv hamne, sar nikla.
-Basheer Badr

Friday, February 22, 2013

ज़िन्दगी तूने मुझे मार दिया था लेकिन,
ये तो मैं था जो तिरे जिन्दों से बेहतर ही जिया।

अब मिले हम तो कई लोग बिछड़ जायेंगे,
इंतज़ार और करो अगले जनम तक मेरा।
 -बशीर बद्र

Wednesday, February 20, 2013

बड़े ताजिरों की सताई हुई,
ये दुनिया दुल्हन है जलाई हुई।

(ताजिर = व्यापारी, सौदागर)

-बशीर बद्र

Saturday, February 2, 2013

मोहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी,
किराए के घर थे बदलते रहे ।
-बशीर बद्र

Friday, January 25, 2013

दालानों की धूप छतों की शाम कहाँ,
घर के बाहर घर जैसा आराम कहाँ।
-बशीर बद्र
 

Wednesday, January 16, 2013

प्यार करना भी जुर्म है शायद,
आज दुनिया ख़फ़ा-सी लगती है।
-बशीर बद्र

Saturday, January 12, 2013

उसकी फितरत में नहीं, रुक के कोई बात सुने,
वक़्त आवाज़ है, आवाज़ को आवाज़ न दो।
- बशीर बद्र

(फितरत = प्रकृति, स्वाभाव)