Monday, May 27, 2013

रात आंखों में ढली, पलकों पे जुगनू आए,
हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए

बस गई है मेरे एहसास में ये कैसी महक,
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊं तेरी ख़ुशबू आए

उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया,
मुद्दतों बाद मेरी आंख में आंसू आए

मैंने दिन-रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी,
कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए

मेरा आईऩा भी अब मेरी तरह पागल है,
आईना देखने जाऊं तो नज़र तू आए

-बशीर बद्र

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