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Wednesday, April 1, 2020

इस नाज़ इस अंदाज़ से तुम हाए चलो हो

इस नाज़ इस अंदाज़ से तुम हाए चलो हो
रोज़ एक ग़ज़ल हम से कहलवाए चलो हो

रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव
चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो

दीवाना-ए-गुल क़ैदी-ए-ज़ंजीर हैं और तुम
क्या ठाट से गुलशन की हवा खाए चलो हो

(दीवाना-ए-गुल = फूलों का दीवाना)

मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो

हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता
तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो

ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो

वो शोख़ सितमगर तो सितम ढाए चले है
तुम हो कि 'कलीम' अपनी ग़ज़ल गाए चलो हो

-कलीम आजिज़

Saturday, April 20, 2019

देखते हैं ज़िंदगी को अपने ही अंदाज़ से
हम जिधर को चल पड़े इक दास्ताँ ले कर चले
-आज़िम कोहली
अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
-निज़ाम रामपुरी

Sunday, April 7, 2019

इक नया अंदाज़ दे शायद हमें

इक नया अंदाज़ दे शायद हमें
ज़िन्दगी आवाज़ दे शायद हमें।

सच को सच कहते रहे हम उम्र भर
अब कोई एज़ाज़ दे शायद हमें।

(एज़ाज़ = इज़्ज़त/प्रतिष्ठा)

अब तलक तो रूठ कर बैठी है पर
ज़िन्दगी परवाज़ दे शायद हमें।

(परवाज़ = उड़ान)

लफ़्ज़ कम हैं लबकुशाई के लिए
अब ग़ज़ल अल्फ़ाज़ दे शायद हमें।

(लबकुशा = बात करना)

हम खड़े हैं मोड़ पर उम्मीद से
फिर कोई आवाज़ दे शायद हमें।

- विकास वाहिद।। ०५-०४-१९

Saturday, October 22, 2016

सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं
हम मगर सादगी के मारे हैं
-जिगर मुरादाबादी

Tuesday, May 31, 2016

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे
बस एक बार ज़मीर उसको शर्मसार करे

कई हज़ार तरीक़े हैं ख़ुदखुशी के मियाँ
बशर को अब नहीं लाज़िम किसी को प्यार करे

(बशर = इंसान)

हरेक बात पे तकरार ही नहीं अच्छी
कभी तो प्यार का अन्दाज़ इख़्तियार करे

सुना है उसको अज़ाबों का कोई ख़ौफ़ नहीं
हमारा ज़िक्र भी ज़ालिम कभी-कभार करे

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

हमारे बाद रक़ीबों पे कोई क़ैद न हो
किसी भी हीले से जो चाहे ज़िक्रे-यार करे

किसी भी हाल में जी लेंगे बेहया होकर
कहाँ तलक कोई मरने का इन्तज़ार करे

-कांतिमोहन 'सोज़'

Thursday, March 3, 2016

तेरी साजिश में कुछ कमी है अभी
मेरी बस्ती में रौशनी है अभी

चोट खाकर भी मुस्कुराता हूँ
अपना अंदाज़ तो वही है अभी

-हस्तीमल 'हस्ती'

Thursday, May 14, 2015

हमें हर बात पर यूँ आह भरना भी नहीं आता
किसी को देख जलना, डाह करना भी नहीं आता
ज़रा सा मुख़्तलिफ़ अंदाज अपना शायराना है
हमें हर बात पर ही वाह करना भी नहीं आता
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Monday, May 11, 2015

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है

मुस्कुराते हुए वो मजमा-ए-अग्यार के साथ
आज यूँ बज़्म में आए हैं कि जी जानता है

(मजमा-ए-अग्यार = गैरों का समूह, पराये लोग), (बज़्म = महफ़िल)

जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तूने दिल इतने दुखाए हैं कि जी जानता है

तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़
वो मेरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है

इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है

दोस्ती में तेरी दरपर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है

सादगी, बाँकपन, अग्माज़, शरारत, शोखी
तू ने अंदाज़ वो पाए हैं कि जी जानता है

'दाग़'-ए-वारफ़्ता को हम आज तेरे कूचे से
इस तरह खींच के लाये हैं कि जी जानता है

(वारफ़्ता = तल्लीन, भटका हुआ, बेसुध), (कूचा = गली)

-दाग़
Noorjahan
 
Farida Khanum




 

Saturday, August 16, 2014

शहर जाना तो बस इक बहाना हुआ
वाकई गाँव मेरा पुराना हुआ |

बज रही साँकलें, गा रही कोयलें
ऐसे सपनों को भी अब ज़माना हुआ |

ये तकाज़ा है इस दर्द का जानकर
मेरा अंदाज़ भी शायराना हुआ |

हो गया कुछ इज़ाफ़ा मेरी अक्ल में
"जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ |"

भूख ने रातभर आँख लगने न दी
एक मासूम जल्दी सयाना हुआ |

अपने बच्चे को कहता है बेकार कौन
आखिर अपना खज़ाना, खज़ाना हुआ |

वक्त के साथ हम भी बदल जाएँगे
हम परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ |

-आशीष नैथानी 'सलिल'

Wednesday, May 21, 2014

जुगनू ही दीवाने निकले
अँधियारा झुठलाने निकले

ऊँचे लोग सयाने निकले
महलों में तहख़ाने निकले

वो तो सबकी ही ज़द में था
किसके ठीक निशाने निकले

आहों का अंदाज नया था
लेकिन ज़ख़्म पुराने निकले

जिनको पकड़ा हाथ समझकर
वो केवल दस्ताने निकले
-विज्ञान व्रत

Sunday, August 11, 2013

ज़ख़्म को फूल, तो सरसर को सबा कहते हैं
जाने क्या दौर है, क्या लोग हैं, क्या कहते हैं

[(सरसर = आँधी), (सबा = पुरवाई, शीतल हवा, मंद समीर)]

क्या क़यामत है, के जिन के लिये, रुक रुक के चले
अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं

(आबला-पा = छाले वाले पाँव)

कोई बतलाओ के इक उम्र का बिछड़ा महबूब
इत्तेफ़ाक़न कहीं मिल जाये तो क्या कहते हैं

ये भी अन्दाज़-ए-सुख़न है के जफ़ा को तेरी
ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा कहते हैं

(अन्दाज़-ए-सुख़न = बात कहने का अंदाज़), (जफ़ा  = जुल्म, अत्याचार), (ग़म्ज़ा = प्रेमिका का नखरा और हाव-भाव), (इश्वा = सुन्दर स्त्री का हाव-भाव), (ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा = नखरे, अंदाज़ और अदा)

जब तलक दूर है तू, तेरी परस्तिश कर लें
हम जिसे छू न सकें, उस को ख़ुदा कहते हैं

(परस्तिश = पूजा, आराधना)

क्या त'अज्जुब है, के हम अह्ल-ए-तमन्ना को, फ़राज़
वो जो, महरूम-ए-तमन्ना हैं, बुरा कहते हैं

(अह्ल-ए-तमन्ना = इच्छुक लोग), (महरूम-ए-तमन्ना = इच्छा से रहित)

-अहमद फ़राज़

Wednesday, July 3, 2013

रहें बेफिक्र कैसे

रहें बेफिक्र कैसे आओ इसका राज़ हम सीखें,
परिंदों से नया जीने का ये अंदाज़ हम सीखें ।
कोइ रुत हो, कोई मौसम, हवा प्रतिकूल हो चाहे,
चलो अम्बर को छू लेने की वो परवाज़ हम सीखें।
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Wednesday, May 1, 2013

काग़ज़ का इक ताज महल है
काग़ज़ का अंदाज़ है जिस में
काग़ज़ का हर राज़ है जिस में
काग़ज़ के वादों में लिपटी
काग़ज़ की मुमताज़ है जिस में
-कँवल ज़ियाई

Tuesday, April 30, 2013

बह रहा है कुफ़्र का दरिया कुछ इस अंदाज़ से,
जैसे इस में कोई कश्ती आज तक डूबी न हो।

(कुफ़्र = कृतघ्नता, अकृतज्ञता)

देखना है कौनसी ऐसी क़यामत आएगी,
जो क़यामत हम ग़रीबों ने कभी देखी न हो।
-कँवल ज़ियाई

Saturday, February 23, 2013

जब मैंने उसे खास-निगाहे-नाज़ से देखा,
आईना फिर उसने नए अंदाज़ से देखा ।
-नवाज़ देवबंदी

Wednesday, November 21, 2012

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होठों पे लतीफे हैं आवाज़ में छाले हैं।
-जावेद अख़्तर
अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है,
मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है।
-ज़ेबा जोनपुरी 

Friday, November 9, 2012

ले गया दिल में दबा कर राज़ कोई,
पानियों पर लिख गया आवाज़ कोई ।

बांध कर मेरे परों में मुश्किलों को,
हौसलों को दे गया परवाज़ कोई ।

नाम से जिसके मेरी पहचान होगी,
मुझमें उस जैसा भी हो अंदाज़ कोई ।

जिसका तारा था वो आँखें सो गईं हैं,
अब नहीं करता है मुझपे नाज़ कोई ।

रोज़ उसको ख़ुद के अंदर खोजना है,
रोज़ आना दिल से एक आवाज़ कोई ।

-आलोक श्रीवास्तव

Tuesday, October 2, 2012

तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है,
अंजाम का हो खतरा आगाज़ बदल डालो

पुर सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए,
सुर ही न मिले जिस मे वो साज़ बदल डालो

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना,
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है,
अगर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ बदल डालो
-अल्लामा इक़बाल