Tuesday, October 2, 2012

तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है,
अंजाम का हो खतरा आगाज़ बदल डालो

पुर सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए,
सुर ही न मिले जिस मे वो साज़ बदल डालो

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना,
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है,
अगर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ बदल डालो
-अल्लामा इक़बाल

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