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Friday, March 8, 2019

गुमशुदगी ही अस्ल में यारो राह-नुमाई करती है
राह दिखाने वाले पहले बरसों राह भटकते हैं
-हफ़ीज़ बनारसी

(गुमशुदगी = गुमशुदा होने की अवस्था या भाव, खो जाना, Being lost)

Monday, July 24, 2017

दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए

दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए

दौलत-ए-इश्क़ नहीं बाँध के रखने के लिए
इस ख़ज़ाने को जहाँ तक हो लुटाते रहिए

ज़िंदगी भी किसी महबूब से कुछ कम तो नहीं
प्यार है उस से तो फिर नाज़ उठाते रहिए

ज़िंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए
बोलते रहिए ज़रा हँसते हँसाते रहिए

रूठना भी है हसीनों की अदा में शामिल
आप का काम मनाना है मनाते रहिए

फूल बिखराता हुआ मैं तो चला जाऊँगा
आप काँटे मिरी राहों में बिछाते रहिए

बेवफ़ाई का ज़माना है मगर आप 'हफ़ीज़'
नग़्मा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा सब को सुनाते रहिए

(नग़्मा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा = प्यार और वफ़ा का गीत)

-हफ़ीज़ बनारसी

Friday, January 20, 2017

तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है
-हफ़ीज़ बनारसी

(तदबीर = उपाय, युक्ति, प्रयत्न, कोशिश ), (दस्त-ए-रंगीं = रंगीन हाथ), (तक़दीर = क़िस्मत), (दरख़्शाँ = चमकता हुआ, चमकीला)