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Thursday, December 17, 2015

ग़ुबार बन के उड़े और फ़लक को चूम लिया
बुलंद यूँ भी तेरे ख़ाक़सार होते रहे
-इब्राहीम अश्क़

(फ़लक = आसमान)

Saturday, June 15, 2013

जब मेरी हक़ीक़त जा जा कर, उन को जो सुनाई लोगों ने
कुछ सच भी कहा, कुछ झूठ कहा, कुछ बात बनाई लोगों ने

ढाये हैं हमेशा ज़ुल्म-ओ-सितम, दुनिया ने मुहब्बत वालों पर
दो दिल को कभी मिलने न दिया, दीवार उठाई लोगों ने

आँखों से न आँसू पोंछ सके, होंठों पे ख़ुशी देखी न गई
आबाद जो देखा घर मेरा, तो आग लगाई लोगों ने

तनहाई का साथी मिल न सका, रुस्वाई में शामिल शहर हुआ
पहले तो मेरा दिल तोड़ दिया, फिर ईद मनाई लोगों ने

इस दौर में जीना मुश्किल है, ऐ 'अश्क़' कोई आसान नहीं
हर इक क़दम पर मरने की, अब रस्म चलाई लोगों ने
-इब्राहीम अश्क़


कुछ दूर हमारे साथ चलो हम दिल की कहानी कह देंगे
समझे न जिसे तुम आँखों से वो बात ज़ुबानी कह देंगे

जो प्यार करेंगे जानेंगे हर बात हमारी मानेंगे
जो ख़ुद न जले हों उल्फ़त में वो आग को पानी कह देंगे

जब प्यास जवाँ हो जायेगी एहसास की मंज़िल पायेगी
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे

इस दिल में ज़रा तुम बैठो तो कुछ हाल हमारा पूछो तो
हम सादा दिल हैं 'अश्क' मगर हर बात पुरानी कह देंगे
-इब्राहीम अश्क़