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Tuesday, March 12, 2019

ज़िंदगी तेरे हवादिस हम को
कुछ न कुछ राह पे ले आए हैं

(हवादिस = हादसे)

इतने मायूस तो हालात नहीं
लोग किस वास्ते घबराए हैं

-जाँ निसार अख़्तर

Thursday, September 13, 2018

शाखें रहीं तो फूल भी, पत्ते भी आएँगे
ये दिन अगर बुरे हैं, तो अच्छे भी आएँगे
-"मंज़ूर" हाशमी

Wednesday, June 12, 2013

नज्रे साहिर (साहिर लुधियानवी को समर्पित)

यूँ वो जुल्मत से रहा दस्तो-गरेबाँ यारो
उस से लरजाँ थे बहुत शब के निगहबाँ यारो

[(जुल्मत = अंधकार), (दस्तो-गरेबाँ = संघर्ष करता हुआ), (लरजाँ=कंपित /थरथराते हुए), (निगहबाँ=रक्षक)]

उस से हर गाम दिया हौसले -ताज़ा हमें
वो न इक पल भी रहा हमसे गुरेजाँ यारो

[(गाम = डग, कदम, पग), (हौसले -ताज़ा= नया हौसला), (गुरेजाँ =भागा हुआ, बचकर निकलने वाला)]

उसने मानी न कभी तीरगी-ए-शब से शिकस्त
दिल अँधेरों में रहा उसका फ़रोज़ाँ यारो

[(तीरगी-ए-शब= रात का अँधेरा), (फ़रोज़ाँ= प्रकाशमान, रौशन)]

उसको हर हाल में जीने की अदा आती थी
वो न हालात से होता था परीशाँ यारो

उसने बातिल से न ता-जीस्त किया समझौता
दहर में उस सा कहाँ साहिबो-ईमाँ यारो

[(बातिल = असत्य), (ता-जीस्त = जीवन भर), (साहिबो-ईमाँ = ईमान वाला)]

उसको थी कश्मकशे-दैरो-हरम से नफ़रत
उस सा हिन्दू न कोई उस सा मुसलमाँ यारो

(कश्मकशे-दैरो-हरम = मंदिर मस्जिद के झगड़े)

उसने सुल्तानी-ए-जम्हूर के नग्मे लिखे
रूह शाहों की रही उससे परीशाँ यारो

(सुल्तानी-ए-जम्हूर = आम जनता की बादशाहत)

अपने अशआर की शमाओं से उजाला करके
कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ यारो

उसके गीतों से ज़माने को सँवारे, आओ
रुहे-साहिर को अगर करना है शादाँ यारो

(शादाँ =प्रसन्न)

-हबीब जालिब 

Monday, March 18, 2013

हालात से तंग आकर ये सोचना पड़ता है,
कमज़र्फ़ के हाथों में क्यूँ इल्मो-हुनर आया।
-शायर: नामालूम

[(कमज़र्फ़ = ओछा, नीच), (इल्मो-हुनर = शिक्षा एवं कला)]

Thursday, March 14, 2013

कैसे हालात का वो शख़्स नुमाइंदा था,
बेउसूली के ज़माने में भी जो ज़िन्दा था।
-अज़ीज़ ख़ैराबादी 

Wednesday, February 27, 2013

ग़ालिब न कर हुज़ूर से तू अर्ज़ बार-बार,
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर।
-मिर्ज़ा ग़ालिब

Saturday, November 10, 2012

बिगड़े हुए हालात में टूटा भी नहीं हूँ,
सुधरा मेरा जो वक़्त तो बहका भी नहीं हूँ

काँटों की तरह मैं न चुभा दोस्त! किसी को
एक फूल की मानिंद मैं महका भी नहीं हूँ
-गोविंद मिश्र 

Tuesday, October 23, 2012

दोस्त बन बन के मिले मुझको मिटाने वाले
मैंने देखे हैं कई रंग बदलने वाले

तुमने चुप रहकर सितम और भी ढाया मुझ पर
तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हँसनेवाले

मैं तो इख़लाक़ के हाथों ही बिका करता हूँ
और होंगे तेरे बाज़ार में बिकनेवाले

(अख़लाक़ = इख़लाक़ = शिष्टाचार, सद्वृत्ति)

आख़री बार सलाम-ए-दिल-ए-मुज़्तर ले लो
फिर ना लौटेंगे शब-ए-हिज्र पे रोनेवाले

[(मुज़्तर = व्याकुल, बेचैन, बेबस, लाचार) (सलाम-ए-दिल-ए-मुज़्तर = व्याकुल दिल का सलाम), (शब-ए-हिज्र = जुदाई की रात)]

-सईद राही
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज्बात ने रोने ना दिया
वरना क्या बात थी किस बात ने रोने ना दिया

आप कहते थे के रोने से ना बदलेंगे हालात
उम्र भर आप की इस बात ने रोने ना दिया

रोनेवालों से कह दो उन का भी रोना रोलें
जिन को मज़बूरी-ए-हालात ने रोने ना दिया

तुझ से मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने ना दिया

एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फाकिर'
हम को हर रोज़ के सद़मात ने रोने ना दिया
-सुदर्शन फ़ाकिर

Friday, October 12, 2012

अरमान हमें एक रहा हो तो कहें भी
क्या जाने, ये दिल कितनी चिताओं में जला है

अब जैसा भी चाहें जिसे हालात बना दें
है यूँ कि कोई शख़्स बुरा है, न भला है
-जाँनिसार अख़्तर