Wednesday, June 12, 2013

नज्रे साहिर (साहिर लुधियानवी को समर्पित)

यूँ वो जुल्मत से रहा दस्तो-गरेबाँ यारो
उस से लरजाँ थे बहुत शब के निगहबाँ यारो

[(जुल्मत = अंधकार), (दस्तो-गरेबाँ = संघर्ष करता हुआ), (लरजाँ=कंपित /थरथराते हुए), (निगहबाँ=रक्षक)]

उस से हर गाम दिया हौसले -ताज़ा हमें
वो न इक पल भी रहा हमसे गुरेजाँ यारो

[(गाम = डग, कदम, पग), (हौसले -ताज़ा= नया हौसला), (गुरेजाँ =भागा हुआ, बचकर निकलने वाला)]

उसने मानी न कभी तीरगी-ए-शब से शिकस्त
दिल अँधेरों में रहा उसका फ़रोज़ाँ यारो

[(तीरगी-ए-शब= रात का अँधेरा), (फ़रोज़ाँ= प्रकाशमान, रौशन)]

उसको हर हाल में जीने की अदा आती थी
वो न हालात से होता था परीशाँ यारो

उसने बातिल से न ता-जीस्त किया समझौता
दहर में उस सा कहाँ साहिबो-ईमाँ यारो

[(बातिल = असत्य), (ता-जीस्त = जीवन भर), (साहिबो-ईमाँ = ईमान वाला)]

उसको थी कश्मकशे-दैरो-हरम से नफ़रत
उस सा हिन्दू न कोई उस सा मुसलमाँ यारो

(कश्मकशे-दैरो-हरम = मंदिर मस्जिद के झगड़े)

उसने सुल्तानी-ए-जम्हूर के नग्मे लिखे
रूह शाहों की रही उससे परीशाँ यारो

(सुल्तानी-ए-जम्हूर = आम जनता की बादशाहत)

अपने अशआर की शमाओं से उजाला करके
कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ यारो

उसके गीतों से ज़माने को सँवारे, आओ
रुहे-साहिर को अगर करना है शादाँ यारो

(शादाँ =प्रसन्न)

-हबीब जालिब 

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