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Wednesday, April 22, 2020

कितना सुख है निज अर्पन में

जाने कितने जन्मों का
सम्बंध फलित है इस जीवन में ।।

खोया जब ख़ुद को इस मद में
अपनी इक नूतन छवि पायी,
और उतर कर अनायास
नापी मन से मन की गहराई,
दो कोरों पर ठहरी बूँदें
बह कर एकाकार हुईं जब,
इक चंचल सरिता सब बिसरा
कर जाने कब सिंधु समायी ।

सब तुममय था, तुम गीतों में
गीत गूँजते थे कन-कन में।।

मिलने की बेला जब आयी
दोपहरी की धूप चढ़ी थी,
गीतों को बरखा देने में
सावन ने की देर बड़ी थी,
होंठों पर सुख के सरगम थे,
पीड़ा से सुलगी थी साँसें,
अंगारों के बीच सुप्त सी
खुलने को आकुल पंखुड़ी थी ।

पतझर में बेमौसम बारिश
मोर थिरकता था ज्यों मन में ।।

थीं धुँधली सी राहें उलझीं
पर ध्रुवतारा लक्ष्य अटल था,
बहुत क्लिष्ट थी दुनियादारी
मगर हृदय का भाव सरल था,
लपटों बीच घिरा जीवन पर
साथ तुम्हारा स्निग्ध चाँदनी,
पाषाणों के बीच पल रहे
भावों का अहसास तरल था ।

है आनंद पराजय में अब
कितना सुख है निज अर्पन में ।।

-मानोशी 

Thursday, October 24, 2019

ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही

ओ कल्प-वृक्ष की सोन-जूही, ओ अमलतास की अमर कली,
धरती के आताप से जलते मन पर छायी निर्मल बदली,
मैं तुमको मधु-सद-गंध युक्त, संसार नहीं दे पाउँगा,
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा.

तुम कल्प-वृक्ष का फूल और मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य, मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी ग़ज़ल शुभे, तुम शाम गान सी पावन हो,
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी, बिजुरी सी तुम मन भावन हो

इसलिए व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाउँगा
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा

तुम जिस शैया पर शयन करो, वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौल-श्री, वह आँगन क्या वृन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ, वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो, वह व्यक्ति नहीं वंशी-वट हो

पर मैं वट जैसा सघन छॉंह, विस्तार नहीं दे पाउँगा,
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा.

मैं तुमको चाँद सितारों का सौंपू उपहार भला कैसे,
मैं यायावर बंजारा साधू, दूं सुर श्रंगार भला कैसे
मैं जीवन के प्रश्नो से नाता तोड़ तुम्हारे साथ शुभे,
बारूदी बिछी धरती पर कर लूं दो पल प्यार भला कैसे

इसलिए विवश हर आंसू को सत्कार नहीं दे पाउँगा,
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा.

- डॉ. कुमार विश्वास

Friday, September 27, 2019

आँखें खुली हुई हैं तो मंज़र भी आएगा

आँखें खुली हुई हैं तो मंज़र भी आएगा
काँधों पे तेरे सर है तो पत्थर भी आएगा

हर शाम एक मसअला घर भर के वास्ते
बच्चा ब-ज़िद है चाँद को छू कर भी आएगा

इक दिन सुनूँगा अपनी समाअत पे आहटें
चुपके से मेरे दिल में कोई डर भी आएगा

 (समाअत = सुनना, सुनवाई)

तहरीर कर रहा है अभी हाल-ए-तिश्नगाँ
फिर इस के बाद वो सर-ए-मिंबर भी आएगा

(तहरीर = लेख, लिखावट), (हाल-ए-तिश्नगाँ = प्यासे का हाल), (सर-ए-मिंबर = मंच के ऊपर)

हाथों में मेरे परचम-ए-आग़ाज़-ए-कार-ए-ख़ैर
मेरी हथेलियों पे मिरा सर भी आएगा

(परचम-ए-आग़ाज़-ए-कार-ए-ख़ैर = अच्छा काम शुरू करने का झंडा, Flag of the beginning of good work)

मैं कब से मुंतज़िर हूँ सर-ए-रहगुज़ार-ए-शब
जैसे कि कोई नूर का पैकर भी आएगा

(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (सर-ए-रहगुज़ार-ए-शब = रात के रास्ते पर), (नूर = प्रकाश, ज्योति, आभा, रोशनी, शोभा, छटा, रौनक, चमक-दमक), (पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख, जिस्म)

-अमीर क़ज़लबाश

Tuesday, August 13, 2019

ईद का चाँद तुम ने देख लिया
चाँद की ईद हो गई होगी
-नामालूम 

Thursday, June 27, 2019

'बद्र' जब आगही से मिलता है

'बद्र' जब आगही से मिलता है
इक दिया रौशनी से मिलता है

(आगही  = ज्ञान, जानकारी, समझ-बूझ, चेतना, सूचना)

चाँद तारे शफ़क़ धनक खुशबू
सिलसिला ये उसी से मिलता है

(शफ़क़ = किरणे, सवेरे या शाम की लालिमा जो क्षितिज पर होती है), (धनुक = इन्द्रधनुष)

जितनी ज़ियादा है कम है उतनी ही
ये चलन आगही से मिलता है

(आगही  = ज्ञान, जानकारी, समझ-बूझ, चेतना, सूचना)

दुश्मनी पेड़ पर नहीं उगती
ये समर दोस्ती से मिलता है

(समर=फल)

यूँ तो मिलने को लोग मिलते हैं
दिल मगर कम किसी से मिलता है

'बद्र' आप और ख़याल भी उस का
साया कब रौशनी से मिलता है

-साबिर बद्र जाफ़री

Monday, June 24, 2019

चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर
जिस्म है या कोई शमशीर निकल आई है

(शानों = कन्धों), (शमशीर = तलवार)

मुद्दतों बा'द उठाए थे पुराने काग़ज़
साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है

-साबिर दत्त

Monday, May 13, 2019

सबसे अच्छी प्यार की बातें

सबसे अच्छी प्यार की बातें
बाकी सब बेकार की बातें

फूलों चांद सितारों से भी
प्यारी लगतीं यार की बातें

उसके हुस्न के जैसी दिलकश
तितली फूल बहार की बातें

दिल न भरे कितनी ही कर लो
प्यार की बातें यार की बातें

'हस्ती' है तौहीन सरासर
प्यार में जीत औ'हार की बातें

-हस्तीमल हस्ती

Monday, April 8, 2019

यारो कू-ए-यार की बातें करें

यारो कू-ए-यार की बातें करें
फिर गुल ओ गुलज़ार की बातें करें

(कू-ए-यार  = यार (प्रियतम/प्रियतमा) की गली)

चाँदनी में ऐ दिल इक इक फूल से
अपने गुल-रुख़्सार की बातें करें

(गुल-रुख़्सार = फूल जैसे गाल वाला माशूक़)

अब तो मिलिए बस लड़ाई हो चुकी
अब तो चलिए प्यार की बातें करें

फिर महक उट्ठे फ़ज़ा-ए-ज़िंदगी
फिर गुल ओ रुख़्सार की बातें करें

(गुल = फूल), (रुख़्सार = गाल)

-अख़्तर शीरानी

Wednesday, March 6, 2019

इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
-अख़्तर शीरानी

Wednesday, January 2, 2019

आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया

आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया

खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया

बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया

(शाद = प्रसन्न, खुश, आनंदित)

बात बहुत मा'मूली सी थी उलझ गई तकरारों में
एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बरबाद किया

दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही
सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया

(दाना = बुद्धिमान, अक़्लमंद)

-निदा फ़ाज़ली

Wednesday, December 26, 2018

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख

(ख़िज़ाँ = पतझड़),

घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख

पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख

-निदा फ़ाज़ली

Friday, December 21, 2018

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए

चाँदनी रातों में इक इक फूल को
बे-ख़ुदी कहती है सज्दा कीजिए

जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए

(बर = पर, ऊपर)

इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए

पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए

हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए

आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए

(मुदावा = उपचार, इलाज)

कहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हम को न रुस्वा कीजिए 

(रुस्वा =बदनाम)

-अख़्तर शीरानी

Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली





Monday, January 29, 2018

इन्हें नामों से मैं पहचानता हूँ
मेरे दुश्मन मेरे अंदर खड़े हैं

किसी दिन चाँद निकला था यहाँ से
उजाले आज भी छत पर खड़े हैं

- राहत इंदौरी

Sunday, December 10, 2017

करती है यूँ भी बात मोहब्बत कभी कभी
नज़रें मिलीं न होंट हिले बात हो गई

हम को निगल सकें ये अँधेरों में दम कहाँ
जब चाँदनी से अपनी मुलाक़ात हो गई

-राजेन्द्र नाथ रहबर

महताब नहीं निकला सितारे नहीं निकले

महताब नहीं निकला सितारे नहीं निकले
देते जो शब-ए-ग़म में सहारे नहीं निकले

(महताब = चन्द्रमा), (शब-ए-ग़म = दुःख की रात)

कल रात निहत्ता कोई देता था सदाएँ
हम घर से मगर ख़ौफ़ के मारे नहीं निकले

(निहत्ता = बिना हथियार के, खाली हाथ), (सदाएँ = आवाज़ें)

क्या छोड़ के बस्ती को गया तू कि तिरे बा'द
फिर घर से तिरे हिज्र के मारे नहीं निकले

(हिज्र = बिछोह, जुदाई)

बैठे रहो कुछ देर अभी और मुक़ाबिल
अरमान अभी दिल के हमारे नहीं निकले

(मुक़ाबिल = सम्मुख, सामने)

निकली तो हैं सज-धज के तिरी याद की परियाँ
ख़्वाबों के मगर राज दुलारे नहीं निकले

कब अहल-ए-वफ़ा जान की बाज़ी नहीं हारे
कब इश्क़ में जानों के ख़सारे नहीं निकले

(अहल-ए-वफ़ा =  वफ़ा करने वाले लोग), (ख़सारा = घाटा, नुकसान, हानि)

अंदाज़ कोई डूबने के सीखे तो हम से
हम डूब के दरिया के किनारे नहीं निकले

वो लोग कि थे जिन पे भरोसे हमें क्या क्या
देखा तो वही लोग हमारे नहीं निकले

अशआ'र में दफ़्तर है मआ'नी का भी 'रहबर'
हम लफ़्ज़ों ही के महज़ सहारे नहीं निकले

-राजेन्द्र नाथ रहबर

Saturday, September 30, 2017

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

उसी के चलने-फिरने, हंसने-रोने की हैं तस्वीरें
घटा क्या, चाँद क्या, संगीत क्या, बाद-ए-बहारी क्या

किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या

हमारा मीर जी से मुत्तफ़िक़ होना है नामुमकिन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का-भारी क्या

-निदा फ़ाज़ली

https://www.youtube.com/watch?v=m60cNdXCsT4

Monday, December 19, 2016

ग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना

ग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना

(मुस्तक़िल = चिरस्थाई, निरंतर, लगातार)

दे उठे दाग लौ, उनसे ऐ माह-ए-नौ, कह सुनाना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना

(दे उठे दाग लौ = I have ignited the flame), (माह-ए-नौ = नया चाँद, New Moon), (उनसे ऐ माह-ए-नौ, कह सुनाना = O new moon! Go and convey this to my beloved)

दिल के हाथों से दामन छुड़ाकर
ग़म की नज़रों से नज़रें बचाकर
उठ के वो चल दिये, कहते ही रह गये हम फ़साना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना

(फ़साना = विवरण, हाल)

कोई मेरी ये रूदाद देखे, ये मोहब्बत की बेदाद देखे
फुंक रहा है जिगर, पड़ रहा है मगर, मुस्कुराना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना

(रूदाद = विवरण, कहानी, दशा, हाल), (बेदाद = अत्याचार, अनीति, ज़ुल्म), (जिगर =कलेजा, लिवर)

-मजरूह सुल्तानपुरी




Sunday, November 6, 2016

ख़ुदा ख़ामोश है

बहुत से काम हैं
लिपटी हुई धरती को फैला दें
दरख़्तों को उगाएँ
डालियों पे फूल महका दें
पहाड़ों को क़रीने से लगाएँ
चाँद लटकाएँ
ख़लाओं के सरों पे नील-गूँ आकाश फैलाएँ
सितारों को करें रौशन
हवाओं को गति दे दें
फुदकते पत्थरों को पँख दे कर नग़्मगी दे दें
लबों को मुस्कुराहट
अँखड़ियों को रौशनी दे दें
सड़क पर डोलती परछाइयों को
ज़िंदगी दे दें

ख़ुदा ख़ामोश है!
तुम आओ तो तख़्लीक़ हो दुनिया
मैं इतने सारे कामों को अकेला कर नहीं सकता

-निदा फ़ाज़ली

(दरख़्तों = पेड़ों), (ख़लाओं = शून्य), (नग़्मगी = गीत), (तख़्लीक़ = उत्पत्ति करना, सृजन)

Monday, May 2, 2016

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी

उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी

(माइल = आकर्षित, आसक्त)

अक्स-ए-रुख़सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी

(ताब = सहनशक्ति, आभा, बल), (मह-ए-कामिल = चौदहवीं का चाँद)

अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़
सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी

पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ
आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी

(पा-ए-कूबाँ = ), (ज़िंदाँ = कारागृह, जेल), (आवाज़-ए-सलासिल = ज़ंजीरों की आवाज़)

निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल
वो तेरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी

(तग़ाफ़ुल = बेरुख़ी, उपेक्षा), (ग़ाफ़िल = बेसुध, बेख़बर)

चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी

(चश्म-ए-क़ातिल = क़ातिल की आँख, यहाँ तात्पर्य प्रेमिका की आँखों से है)

क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी

(सबब = कारण), (ख़ू = स्वाभाव, प्रकृति, आदत), (हूर-ए-शमाइल = परियों जैसी आदतें)

-बहादुर शाह ज़फ़र


Mehdi Hassan/ मेहदी हसन (Live)

https://youtu.be/Cms-ektlKyc


Mehdi Hassan/ मेहदी हसन (Film)

https://youtu.be/igAPIzQbidk


Jagjit Singh/ जगजीत सिंह

https://youtu.be/jr81ch6aYgk



Runa Laila/ रूना लैला

https://youtu.be/d77gMYKLJ8s



आए कुछ अब्र कुछ शराब आये

आए कुछ अब्र कुछ शराब आये
उसके बाद आए जो अज़ाब आये

(अब्र = बादल), (अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आये

(बाम = छत), (मीना = शराब रखने के पात्र), (माहताब = चन्द्रमा), (दस्त-ए-साक़ी = साक़ी का हाथ), (आफ़ताब = सूरज)

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आये

उम्र के हर वरक़ पे दिल को नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आये

(वरक़ = किताब के पन्ने, पृष्ठ), (मेहर–ओ–वफ़ा = प्यार और वफ़ा), (बाब = किताब का अध्याय, परिच्छेद)

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये

(ग़म-ए-जहाँ = दुनिया के दुःख)

ना गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में रोज़ यूँ इंक़लाब आये

(सरदारी = अध्यक्षता, स्वामित्व)

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानाख़राब आए

(बज़्म-ए-ग़ैर = ग़ैर की महफ़िल), (दर-ओ-बाम = दरवाज़े और छत), (ख़ानाख़राब  = अभागा, बदनसीब)

इस तरह अपनी ख़ामोशी गूंजी
गोया हर सिम्त से ज़वाब आये

(गोया = मानो, जैसे), (सिम्त = दिशा, ओर)

'फ़ैज़' की राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये

(सर-ब-सर = बिलकुल, सरासर)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Mehdi Hassan/ मेहदी हसन 



Begum Akhtar/ बेगम अख़्तर 



Jagjit Singh/ जगजीत सिंह


Runa Laila/ रूना लैला