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Saturday, March 9, 2013

ज़िन्दगी की इक हक़ीक़त आपसे कहता हूँ मैं
बिजलियों के दरमियाँ ही रात-दिन रहता हूँ मैं

तैरता है जिसका चेहरा मेरे दिल की झील में
उसकी ख़ुशबू से महककर ही ग़ज़ल कहता हूँ मैं

ख्व़ाब जब भी टूटते हैं ख़ुश्क पत्तों की तरह
रेत की दीवार-सा तब एकदम ढहता हूँ मैं

आँसुओं का है समन्दर मेरे दिल के बीच में
लोग ऐसा सोचते हैं ख़ुश बहुत रहता हूँ मैं

है वही सब कुछ मेरा जिसके लिए मैं कुछ नहीं
क्या बताऊँ किस तरह इस दर्द को सहता हूँ मैं

मन मेरा पागल हवा था एक वो भी दौर था
अब तो मन के साथ कमरे में पड़ा रहता हूँ मैं

लौटकर बरसेंगे उसके प्यार के बादल 'तुषार'
इस भरोसे में जुदाई की तपिश सहता हूँ मैं

-नित्यानंद 'तुषार'

Saturday, February 23, 2013

तुम्हें ख़ूबसूरत नज़र आ रही हैं,
ये राहें तबाही के घर जा रही हैं।

अभी तुमको शायद पता भी नहीं है,
तुम्हारी अदाएँ सितम ढा रही हैं।

कहीं जल न जाए नशेमन हमारा,
हवाएँ भी शोलों को भड़का रही हैं।

हम अपने ही घर में पराये हुए हैं,
सियासी निगाहें ये समझा रही हैं।

गल़त फ़ैसले नाश करते रहे हैं,
लहू भीगी सदियाँ ये बतला रही हैं।

'तुषार' उनकी सोचों को सोचा तो जाना,
दिलों में वो नफरत को फैला रही हैं।

-नित्यानंद 'तुषार'
 

Friday, February 22, 2013

जो गुनाहों में लगे हैं उनकी क्यों चर्चा करें,
जो गुनाहों से बचे हैं उनको हम सजदा करें।
-नित्यानंद 'तुषार'
एक दिन रौशनी करेंगे हम,
हमने सूरज निकलते देखा है।
आप नाहक गुरूर करते हैं,
अच्छे-अच्छों को ढलते देखा है।
-नित्यानंद 'तुषार'

Sunday, February 17, 2013

जो रिश्ते हैं हक़ीक़त में वो अब रिश्ते नहीं होते
हमें जो लगते हैं अपने वही अपने नहीं होते

कशिश होती है कुछ फूलों में ,पर ख़ुशबू नहीं होती
ये अच्छी सूरतों वाले सभी अच्छे नहीं होते

वतन की जो तरक़्क़ी है अभी तो वो अधूरी है
वो घर भी हैं, दवाई के जहाँ पैसे नहीं होते

इन्हें जो भी बनाते हैं वो हम तुम ही बनाते हैं
किसी मज़हब की साजिश में कभी बच्चे नहीं होते

सभी के पेट को रोटी, बदन पे कपड़े,सर पे छत
बहुत अच्छे हैं ये सपने मगर सच्चे नहीं होते

पसीने की सियाही से जो लिखते हैं इरादों को
'तुषार' उनके मुक़द्दर के सफ़े कोरे नहीं होते
-नित्यानंद 'तुषार'

Friday, February 15, 2013

जो रहे सबके लबों पर उस हँसी को ढूँढ़िए,
बँट सके सबके घरों में उस खुश़ी को ढूँढ़िए।

देखिए तो आज सारा देश ही बीमार है,
हो सके उपचार जिससे उस जड़ी को ढूँढ़िए।

काम मुश्किल है बहुत पर कह रहा हूँ आपसे,
हो सके तो भीड़ में से आदमी को ढ़ूढ़िए।

हर दिशा में आजकल बारूद की दुर्गन्ध है,
जो यहाँ ख़ुशबू बिखेरे उस कली को ढूँढ़िए।

प्यास लगने से बहुत पहले हमेशा दोस्तो,
जो न सूखी हो कभी भी उस नदी को ढूँढ़िए।

शहर-भर में हर जगह तो हादसों की भीड़ है,
हँस सकें हम सब जहाँ पर उस गली को ढूँढ़िए।

क़त्ल, धोखा, लूट, चोरी तो यहाँ पर आम हैं,
रहजनों से जो बची उस पालकी को ढूँढ़िए।

-नित्यानंद 'तुषार'

Thursday, January 24, 2013

हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते
बहुत चाहो जिन्हें दिल से वही अक्सर नहीं मिलते

ज़रा ये तो बताओ तुम हुनर कैसे दिखाएँ वो
यहाँ जिन बुत-तरासों को सही पत्थर नहीं मिलते

हमें ऐसा नहीं लगता यहाँ पर वार भी होगा
यहाँ के लोग हमसे तो कभी हँसकर नहीं मिलते

हमारी भी तमन्ना थी उड़ें आकाश में लेकिन
विवश होकर यही सोचा सभी को पर नहीं मिलते

ग़ज़ब का खौफ छाया है हुआ क्या हादसा यारो
घरों से आजकल बच्चे हमें बाहर नहीं मिलते

हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते
-नित्यानंद 'तुषार'

Saturday, January 19, 2013

हवा जब तेज़ चलती है तो पत्ते टूट जाते हैं,
मुसीबत के दिनों में अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं।

बहुत मजबूर हैं हम झूठ तो बोला नहीं जाता,
अगर सच बोलते हैं हम तो रिश्ते टूट जाते हैं।

भले ही देर से आए मगर वो वक़्त आता है,
हक़ीक़त खुल ही जाती है मुखौटे टूट जाते हैं।

-नित्यानंद 'तुषार'

Thursday, January 10, 2013

आग लगने लगे जिसे सुनकर,
फ़ैसला वो जनाब मत करना।

चाहे कुछ भी 'तुषार' मिलता हो,
अपनी नीयत ख़राब मत करना।

-नित्यानंद 'तुषार'
धुंध-सी छाई हुई है आज घर के सामने,
कुछ नज़र आता नहीं है अब नज़र के सामने।

सिर कटाओ या हमारे सामने सजदा करो,
शर्त ये रख दी गई है हर बशर के सामने।

सोचता हूँ क्यूँ अदालत ने बरी उसको किया,
क़त्ल करके जो गया सारे नगर के सामने।

देर तक देखा मुझे और फिर किसी ने ये कहा,
आज तो मुझको पढ़ो, मैं हूँ नज़र के सामने।

कल सड़क पर मर गए थे ठंड से कुछ आदमी,
देश की उन्नति बताते पोस्टर के सामने।

लौटना मत बीच से पूरा करो अपना सफ़र,
हल करो वो मुश्किलें जो हैं डगर के सामने।
-नित्यानंद 'तुषार'

Wednesday, January 9, 2013

वक़्त लग जाएगा जगाने में
लोग सोए हैं इस ज़माने में

ख्व़ाब सबके हसीन होते हैं
उम्र लगती है उनको पाने में

दुश्मनों को भी मात करते हैं
दोस्त कैसे हैं इस ज़माने में

अब जो हमदर्द बनके आए हैं
वो भी शामिल हैं घर जलाने में

लोग इतना नहीं समझ पाते
क्या बिगड़ता है मुस्कराने में

सच को सच जो 'तुषार' कहते हैं
वो ही रहते हैं अब निशाने में
-नित्यानंद 'तुषार'

Sunday, January 6, 2013

ख़ुद से बाहर अब निकलकर देखें,
दूसरों के ग़म भी चलकर देखें।

टूटने पर टूट जाएगा दिल,
आप सपनों को सँभलकर देखें।

रोशनी देते रहे जो कल तक,
उनकी खात़िर आज जलकर देखें।

ये बहुत मुश्किल सही फिर भी हम,
इस जहाँ को ही बदलकर देखें।

उनको गिरने से बचा लेना तुम,
जो ये सोचें हम फिसलकर देखें।
-नित्यानंद 'तुषार'
ये सफ़र कितना कठिन है रास्तों को क्या पता,
कैसे-कैसे हम बचे हैं हादसों को क्या पता।

आँधियाँ चलतीं हैं तो फिर सोचतीं कुछ भी नहीं,
टूटते हैं पेड़ कितने आँधियाँ को क्या पता।

अपनी मर्जी से वो चूमें, अपने मन से छोड़ दें,
किस क़दर बेबस हैं गुल ये तितलियों को क्या पता।

एक पल में राख कर दें वो किसी का आशियाँ,
कैसे घर बनता है यारो बिजलियों को क्या पता।

आइने ये सोचते हैं सच कहा करते हैं वो,
उनके चेहरे पर हैं चेहरे आइनों को क्या पता।

जाने कब देखा था उसको आज तक उसके हैं हम,
क़ीमती कितने थे वे पल उन पलों को क्या पता।

जैसे वो हैं हम तो ऐसे हो नहीं सकते 'तुषार',
हम उन्हें भी चाहते हैं दुश्मनों को क्या पता।
-नित्यानंद 'तुषार'

Saturday, January 5, 2013

मुश्किलों से भी निकलना सीखिए,
जगमगाना है तो जलना सीखिए।

जब फिसलने की तमन्ना हो जवाँ,
उन दिनों में भी संभलना सीखिए।
-नित्यानंद 'तुषार'
नई दुनिया बनानी है, नई दुनिया बसाएँगे,
सितम की उम्र छोटी है जरा उनको बता देना।

अगर कुछ भी जले अपना बड़ी तकलीफ़ होती है,
बहुत आसान होता है किसी का घर जला देना।
-नित्यानंद 'तुषार'