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Saturday, December 22, 2018

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है

जब से तू ने हल्की हल्की बातें कीं
यार तबीअत भारी भारी रहती है

पाँव कमर तक धँस जाते हैं धरती में
हाथ पसारे जब ख़ुद्दारी रहती है

वो मंज़िल पर अक्सर देर से पहुँचे हैं
जिन लोगों के पास सवारी रहती है

छत से उस की धूप के नेज़े आते हैं
जब आँगन में छाँव हमारी रहती है

(नेज़े = तीर)

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

-राहत इंदौरी

Monday, January 29, 2018

इन्हें नामों से मैं पहचानता हूँ
मेरे दुश्मन मेरे अंदर खड़े हैं

किसी दिन चाँद निकला था यहाँ से
उजाले आज भी छत पर खड़े हैं

- राहत इंदौरी

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी
हम ना होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी

पांव पत्थर करके छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिए तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जाएगी

तुमने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मैं न कहता था के दुनिया दर्द-ए-सर हो जाएगी

तल्खियां भी लाज़िमी हैं ज़िन्दगी के वास्ते
इतना मीठा बनकर मत रहिए शकर हो जाएगी

जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिए
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी

(सहर = सुबह)

- राहत इंदौरी

Sunday, December 10, 2017

ज़िंदगी है इक सफ़र और ज़िंदगी की राह में
ज़िंदगी भी आए तो ठोकर लगानी चाहिए

मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
-राहत इंदौरी

Monday, February 6, 2017

मंज़िलों की हर कहानी बे-असर हो जायेगी

मंज़िलों की हर कहानी बे-असर हो जायेगी
हम न होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जायेगी

ज़िन्दगी भी काश मेरे साथ रहती सारी उम्र
खैर अब जैसी भी होनी है बसर हो जायेगी

जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिये
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जायेगी

पाँव पत्थर कर के छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिये तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जायेगी

तुमने खुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मै न कहता था दुनिया दर्द-ऐ-सर हो जायेगी

-राहत इन्दौरी

Thursday, October 20, 2016

हादसे राह में ज़ंजीर बक़फ हैं लेकिन
मंज़िलों का ये तक़ाजा है के चलते रहिये
-राहत इंदौरी

(बक़फ = हाथ में)

Saturday, July 2, 2016

मौसम की मनमानी है, आँखों आँखों पानी है

मौसम की मनमानी है
आँखों आँखों पानी है

साया साया लिख डालो
दुनिया धूप कहानी है

सब पर हँसते रहते हैं
फूलों की नादानी है

हाय ये दुनिया,हाय ये लोग
हाय,ये सब कुछ फ़ानी है

(फ़ानी = नश्वर, नष्ट हो जाने वाला)

साथ एक दरिया रख लेना
रस्ता रेगिस्तानी है

कितने सपने देख लिये
आँखों को हैरानी है

दिलवाले अब कम कम हैं
वैसे क़ौम पुरानी है

दुनिया क्या है मुझसे पूछ
मैंने दुनिया छानी है

बारिश,दरिया,सागर,ओस,
आँसू पहला पानी है

तुझको भूले बैंठे हैं
क्या ये कम क़ुर्बानी है

दरिया हमसे आँख मिला
देखें कितना पानी है

मौसम की मनमानी है
आँखों आँखों पानी है

-राहत इंदौरी

Saturday, December 7, 2013

हमसे पूछो के ग़ज़ल मांगती है कितना लहू
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है

प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानू वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
-राहत इन्दौरी
ख़्वाबों में जो बसी है दुनिया हसीन है
लेकिन नसीब में वही दो गज़ ज़मीन है
- राहत इन्दौरी
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आंधी को इशारा करके
-राहत इन्दौरी
दोज़ख के इंतज़ाम में उलझा है रात दिन
दावा ये कर रहा है के जन्नत में जाएगा
-राहत इन्दौरी
सिर्फ़ खंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए
ए ख़ुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए

मैंने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समन्दर कह रहा था मुझको पानी चाहिए
-राहत इन्दौरी

Wednesday, June 19, 2013

मेरी साँसों में समाया भी बहुत लगता है,
और शख़्स पराया भी बहुत लगता है,

उससे मिलने की तमन्ना भी बहुत है,
लेकिन आने जाने में किराया भी बहुत लगता है
-राहत इन्दौरी

Sunday, June 9, 2013

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो

दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो

अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो

चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो
-राहत इन्दौरी

Wednesday, May 8, 2013

न किसी हमसफ़र न हमनशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा ।
-राहत इन्दौरी

Monday, May 6, 2013

सुपुर्द कौन से क़ातिल को ख़्वाब करना है,
फिर एक बार हमें इन्तिख़ाब करना है ।
-राहत इन्दौरी

(इन्तिख़ाब = चुनाव) 

Monday, March 18, 2013

मेरी ख्वाहिश है के आंगन में दीवार ना उठे,
मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले।
-राहत इन्दौरी

Wednesday, March 6, 2013

हरेक चेहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो,
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो।

न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो।

ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक, उसे बुरा न कहो।

हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो।

-राहत इन्दौरी
कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिये,
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है।

फूलों की खुशबू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं,
ये रहज़न का काम नहीं है, रहबर की मक़्क़ारी है।

(रहज़न = डाकू, लुटेरा), (रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)

अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये,
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है।

कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना,
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है।

(कश्ती = नाव)

-राहत इन्दौरी

Tuesday, March 5, 2013

उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर,
ज़िन्दगी को ढ़ूंढ़ने में ज़िन्दगी बर्बाद की।
-राहत इन्दौरी



Umra bhar chalte rahe aankhon pe patti baandh kar,
Zindagi ko dhoondhne me zindagi barbaad kee.
-Rahat Indauri