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Sunday, April 21, 2019

रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो

रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो
रस्ता है धूप का कोई दीवार ले चलो

(रख़्त-ए-सफ़र = यात्रा का सामान)

ताक़त नहीं ज़बाँ में तो लिख ही लो दिल की बात
कोई तो साथ सूरत-ए-इज़हार ले चलो

(सूरत-ए-इज़हार = अभिव्यक्ति का रास्ता/ मार्ग)

देखूँ तो वो बदल के भला कैसा हो गया
मुझ को भी उस के सामने इस बार ले चलो

कब तक नदी की तह में उतारोगे कश्तियाँ
अब के तो हाथ में कोई पतवार ले चलो

पड़ती हैं दिल पे ग़म की अगर सिलवटें तो क्या
चेहरे पे तो ख़ुशी के कुछ आसार ले चलो

जितने भँवर कहोगे पहन लूँगा जिस्म पर
इक बार तो नदी के मुझे पार ले चलो

कुछ भी नहीं अगर तो हथेली पे जाँ सही
तोहफ़ा कोई तो उस के लिए यार ले चलो

-अदीम हाशमी

Friday, April 19, 2019

आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया

आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया
मिट्टी में मोतियों को बिखरने नहीं दिया

जिस राह पर पड़े थे तिरे पाँव के निशाँ
इस राह से किसी को गुज़रने नहीं दिया

चाहा तो चाहतों की हदों से गुज़र गए
नश्शा मोहब्बतों का उतरने नहीं दिया

हर बार है नया तिरे मिलने का ज़ाइक़ा
ऐसा समर किसी भी शजर ने नहीं दिया

(समर = फल), (शजर = पेड़)

ये हिज्र है तो इस का फ़क़त वस्ल है इलाज
हम ने ये ज़ख़्म-ए-वक़्त को भरने नहीं दिया

(हिज्र = जुदाई), (वस्ल = मिलन)

इतने बड़े जहान में जाएगा तू कहाँ
इस इक ख़याल ने मुझे मरने नहीं दिया

साहिल दिखाई दे तो रहा था बहुत क़रीब
कश्ती को रास्ता ही भँवर ने नहीं दिया

(साहिल = किनारा), (कश्ती = नाव)

जितना सकूँ मिला है तिरे साथ राह में
इतना सुकून तो मुझे घर ने नहीं दिया

इस ने हँसी हँसी में मोहब्बत की बात की
मैं ने 'अदीम' उस को मुकरने नहीं दिया

-अदीम हाशमी

Thursday, April 18, 2019

आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर

आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर
तन्हा तो तड़पने से बचा ले कोई आ कर

सहरा में उगा हूँ कि मिरी छाँव कोई पाए
हिलता हूँ कि पत्तों की हवा ले कोई आ कर

(सहरा = रेगिस्तान, जंगल, बयाबान, वीराना)

बिकता तो नहीं हूँ न मिरे दाम बहुत हैं
रस्ते में पड़ा हूँ कि उठा ले कोई आ कर

कश्ती हूँ मुझे कोई किनारे से तो खोले
तूफ़ाँ के ही कर जाए हवाले कोई आ कर

(कश्ती = नाव)

जब खींच लिया है मुझे मैदान-ए-सितम में
दिल खोल के हसरत भी निकाले कोई आ कर

दो चार ख़राशों से हो तस्कीन-ए-जफ़ा क्या
शीशा हूँ तो पत्थर पे उछाले कोई आ कर

(जफ़ा = सख्ती, जुल्म, अत्याचार), (तस्कीन = धैर्य, संयम, सहनशीलता)

मेरे किसी एहसान का बदला न चुकाए
अपनी ही वफ़ाओं का सिला ले कोई आ कर

-अदीम हाशमी

Wednesday, April 17, 2019

बस ये सफ़र हयात का इतनी सी ज़िंदगी
क्यूँ इतनी जल्दी रास्ता सारा गुज़र गया

(हयात = जीवन)

मुजरिम हुआ था आँख झपकने का मैं 'अदीम'
जो ज़ेहन में बसा था नज़ारा गुज़र गया

-अदीम हाशमी

Tuesday, April 16, 2019

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
ऐसे लगा कि एक ज़माना गुज़र गया

सब के लिए बुलंद रहे हाथ उम्र भर
अपने लिए दुआओं का लम्हा गुज़र गया

कोई हुजूम-ए-दहर में करता रहा तलाश
कोई रह-ए-हयात से तन्हा गुज़र गया

(हुजूम-ए-दहर = दुनिया की भीड़), (रह-ए-हयात = ज़िन्दगी की राह)

मिलना तो ख़ैर उस को नसीबों की बात है
देखे हुए भी उस को ज़माना गुज़र गया

दिल यूँ कटा हुआ है किसी की जुदाई में
जैसे किसी ज़मीन से दरिया गुज़र गया

इस बात का मलाल बहुत है मुझे 'अदीम'
वो मेरे सामने से अकेला गुज़र गया

हम देखने का ढंग समझते रहे 'अदीम'
इतने में ज़िंदगी का तमाशा गुज़र गया

बाक़ी बस एक नाम-ए-ख़ुदा रह गया 'अदीम'
सब कुछ बहा के वक़्त का दरिया गुज़र गया

-अदीम हाशमी

Saturday, April 13, 2019

मुझी में गूँज रही है मिरे सुख़न की सदा
नवा-ए-गर्म हूँ मैं दश्त-ए-बे-ज़बान में हूँ

(शायरी, कविता, बातें), (सदा = आवाज़), (नवा-ए-गर्म = उत्साहित आवाज़/ गीत), (दश्त-ए-बे-ज़बान = बिना आवाज़ का रेगिस्तान/ जंगल)

'अदीम' बैठा हुआ हूँ परों के ढेर पे मैं
ख़ुश इस तरह हूँ कि जैसे किसी उड़ान में हूँ

-अदीम हाशमी

Friday, April 12, 2019

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है
फ़र्क़ लोगों में इस क़दर क्यूँ है

(गुहर = मोती)

तू मिला है तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी इतनी मुख़्तसर क्यूँ है

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)

जब तुझे लौट कर नहीं आना
मुंतज़िर मेरी चश्म-ए-तर क्यूँ है

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (भीगी हुई आँखें, नम आँखें)

ये भी कैसा अज़ाब दे डाला
है मोहब्बत तो इस क़दर क्यूँ है

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट, संताप)

तू नहीं है तो रोज़-ओ-शब कैसे
शाम क्यूँ आ गई सहर क्यूँ है

क्यूँ रवाना है हर घड़ी दुनिया
ज़िंदगी मुस्तक़िल सफ़र क्यूँ है

(मुस्तक़िल = चिरस्थाई, निरंतर, लगातार)

मैं तो इक मुस्तक़िल मुसाफ़िर हूँ
तू भला मेरा हम-सफ़र क्यूँ है

(मुस्तक़िल = चिरस्थाई, निरंतर, लगातार)

तुझे मिलना नहीं किसी से 'अदीम'
फिर बिछड़ने का तुझ को डर क्यूँ है

-अदीम हाशमी

Friday, December 21, 2018

पत्थर है तेरे हाथ में या कोई फूल है

पत्थर है तेरे हाथ में या कोई फूल है
जब तू क़ुबूल है, तेरा सब कुछ क़ुबूल है

फिर तू ने दे दिया है नया फ़ासला मुझे
सर पर अभी तो पिछली मसाफ़त की धूल है

(मसाफ़त = फ़ासला, दूरी)

तू दिल पे बोझ ले के मुलाक़ात को न आ
मिलना है इस तरह तो, बिछड़ना क़ुबूल है

तू यार है तो इतनी कड़ी गुफ़्तगू न कर
तेरा उसूल है तो, मिरा भी उसूल है

लफ़्ज़ों की आबरू को गँवा न यूँ 'अदीम'
जो मानता नहीं उस से, कहना फ़ुज़ूल है

-अदीम हाशमी

Wednesday, February 20, 2013

हर कोई पारसाई की उम्दा मिसाल था,
दिल ख़ुश हुआ है एक गुनाहगार देख कर।
- अदीम हाशमी

(पारसाई = संयम, सदाचार)