Friday, April 12, 2019

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है
फ़र्क़ लोगों में इस क़दर क्यूँ है

(गुहर = मोती)

तू मिला है तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी इतनी मुख़्तसर क्यूँ है

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)

जब तुझे लौट कर नहीं आना
मुंतज़िर मेरी चश्म-ए-तर क्यूँ है

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (भीगी हुई आँखें, नम आँखें)

ये भी कैसा अज़ाब दे डाला
है मोहब्बत तो इस क़दर क्यूँ है

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट, संताप)

तू नहीं है तो रोज़-ओ-शब कैसे
शाम क्यूँ आ गई सहर क्यूँ है

क्यूँ रवाना है हर घड़ी दुनिया
ज़िंदगी मुस्तक़िल सफ़र क्यूँ है

(मुस्तक़िल = चिरस्थाई, निरंतर, लगातार)

मैं तो इक मुस्तक़िल मुसाफ़िर हूँ
तू भला मेरा हम-सफ़र क्यूँ है

(मुस्तक़िल = चिरस्थाई, निरंतर, लगातार)

तुझे मिलना नहीं किसी से 'अदीम'
फिर बिछड़ने का तुझ को डर क्यूँ है

-अदीम हाशमी

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