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Tuesday, January 6, 2015

हम ही में थी न कोई बात, याद न तुम को आ सके

हम ही में थी न कोई बात, याद न तुम को आ सके
तुमने हमें भुला दिया, हम न तुम्हें भुला सके

तुम ही न सुन सके अगर, क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन
किस की ज़ुबाँ खुलेगी फिर, हम न अगर सुना सके

होश में आ चुके थे हम, जोश में आ चुके थे हम
बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके

(बज़्म =महफ़िल)

शौक़-ए-विसाल है यहाँ, लब पे सवाल है यहाँ
किस की मजाल है यहाँ, हम से नज़र मिला सके

(शौक़-ए-विसाल = मिलन की चाहत)

रौनक़-ए-बज़्म बन गए लब पे हिकायतें रहीं
दिल में शिकायतें रहीं लब न मगर हिला सके

(रौनक़-ए-बज़्म = महफ़िल की रौनक), (हिकायतें = कहानियाँ, किस्से)

ऐसा भी कोई नामाबर बात पे कान धर सके
सुन कर यक़ीन कर सके जा के उन्हें सुना सके

 (नामाबर = संदेशवाहक, डाकिया)

अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन तेरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके

(अहल-ए-ज़बाँ = बोलने वाले, कहने वाले), (अहल-ए-दिल = दिल वाले)

-हफ़ीज़ जालंधरी

                                                       मेहदी हसन/ Mehdi Hassan

जगजीत सिंह/ Jagjit Singh 

Wednesday, October 29, 2014

देखा जो तीर खा के कमींगाह की तरफ़ 
अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गई 

-हफ़ीज़ जालंधरी

(कमींगाह = घात लगाने की जगह)

Tuesday, November 20, 2012

हो गया अब इश्क़, हम-आग़ोश तूफ़ान-ए-शबाब,
अक्ल बैठी रह गयी साहिल पे शरमाई हुई
-हफ़ीज़ जालंधरी

Friday, October 12, 2012

इरादे बांधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ,
कहीं ऐसा ना हो जाए, कहीं वैसा ना हो जाए।
-हफ़ीज़ जालंधरी