mir-o-ghalib
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Spiritual Science
Friday, October 12, 2012
इरादे बांधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ,
कहीं ऐसा ना हो जाए, कहीं वैसा ना हो जाए।
-हफ़ीज़ जालंधरी
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